Book Title: Sthanang Sutra Ppart 02
Author(s): Devchandra Maharaj
Publisher: Mundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh

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Page 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥ ३३२।। KXXXXXXXXXXXXXXxxxxxxxxxxxxx संवरखाळो, इंद्रिय अने मननी प्रशमतारूप अधिक समाधिवाळो, स्नेह रहित, भवन तवानो अर्थी (इच्छनारो), उपधान तपन ४ स्थानकरनार, दुःखना कारणभूत कर्मने खपावनार, तपस्वी-तप करनार थाय छे तेने तथाप्रकारनो-अति घोर तप न होय, तथा- काध्ययने प्रकारना दुःखे सहन करी शकाय एवी वेदना न होय, तथाप्रकारना अल्पकर्मी विगेरे विशेषणवाळो पुरुषजात, घणा काळनी उद्देशः १ प्रव्रज्यावडे सिद्ध थाय छ-मोक्षे जाय छ, केवलज्ञानवडे जाणे छे, सकल कर्मथी मकाय छ, समग्र कर्मना छूटवाथी शीतळ४ अन्तक्रियाः थाय छ, समस्त ( शारीरिक अने मानसिक) दुःखोनो अंत करे छे-जेम चारे दिशाना स्वामी चक्रवती भरत महाराजाए को |सू०२३५ तेम. (१), हवे बीजी अंतक्रिया कहे छे-घणा कर्मोवडे बहुल कर्मवाळी प्रत्यायात-मनुष्यपणाने प्राप्त थयेल यावत् मुंड थइने ते अगारथी अणगारपणाने पामेल, अधिक संयमवाळो, विशेष संवरवाळो यावत् उपधानतपवाळो, दुःखनो क्षय करनारो तपस्वी थाय छ, तेने तथाप्रकारनो घोर तप, तथाप्रकारनी अत्यंत वेदना थाय छे, तेवा प्रकारनो पुरुषजात थोडा काळनी प्रव्रज्यावडे सिद्ध थाय छे यावत् सर्व दुःखोनो गजसुकुमाल मुनिनी माफक अंत करे छे. आ बीजी अंतक्रिया. (२), वळी अन्य त्रीजी अंतक्रिया कहे छे-महाकर्मवाळो, मनुष्यत्वने प्राप्त थयेल यावत् होय छे, ते मुंड थईने अगारथी अणगारपणाने पामेल इत्यादि जेम बीजी अंतक्रिया कही तेम जाणवी, परंतु विशेष ए के-लांचा कालनी प्रव्रज्यावडे सिद्ध थाय छे यावत् चारे दिशाना स्वामी सनत्कुमार चक्रवर्तीनी माफक सर्व दुःखोना अंतने करे छे. आत्रीजी अंतक्रिया (३), वळी अन्य चोथी अंतक्रिया कहे छ-अल्प कर्मवाळो मनुष्यपणाने पामेल यावत् थाय छे, ते मुंड थईने यावत् प्रव्रज्याने प्राप्त करेल, बहुल संयमवाळो यावत् तेने तथाप्रकारनो तप नथी, तथाप्रकारनी वेदना नथी, तेवा प्रकारनो पुरुषजात अल्पकालीन प्रव्रज्यावडे मोक्षे xxxxxxxxxxxxx PARXXXXX ★॥३३२ ॥ For Private and Personal Use Only

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