Book Title: Sthanang Sutra Ppart 02
Author(s): Devchandra Maharaj
Publisher: Mundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org माता स्थावरकायपणामां पण बहुलताए क्षीण कर्मपणाथी अल्प कर्मवाळा, वळी जेने तप अने वेदना नथी ते सिद्ध थया. उत्तम हाथी उपर बेठेला मरुदेवी मातानुं आयुष्य समाप्त धये सिद्धपणुं थयेल छे. (४) आ दाष्टतिक (उपमा अने उपमेयरूप) अर्थोनुं सर्व प्रकारे समानपणुं विचारखुं नहि. एओने देश ( अमुक अंश ) रूप दृष्टांतपणाथी विचार. ) कारण के मरुदेवीमाताने 'मुंडे भवित्ते 'त्यादि० केटलाएक विशेषणो घटी शकता नथी पण फळथी सर्वथा समानपणुं घटी शके छे. ( सू०२३५ ) पुरुपविशेषोनी अंतक्रिया कही, हवे तओना ज स्वरूपने निरूपण करवा माटे दातिक छवीश सूत्रो कहे छे चत्तारि रुक्खा पं० तं० - उन्नए नामेगे उन्नए १, उन्नते नाममेगे पणते २, पणते नाममेगे उन्नते ३, पणते नाममेगे पणते ४, १। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पं० तं०-उन्नते नामेगे उन्नते, तव जाव पणते नामेगे पणते २ । चत्तारि रुक्खा पं० तं०- उन्नते नाममेगे उन्नतपरिणए १, उore नाममेगे पणतपरिणए २ पणते णाममेगे उन्नतपरिणते ३ पणए नाममेगे पणतपरिणए ४, ३ एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पं० तं०-उन्नते नाममेगे उन्नतपरिणते चउभंगो ४, ४ । चत्तारि रुक्खा पं० तं०- उन्नते नामेगे उन्नतरूवे तहेव चउभंगो ४, ५ । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पं० तं० For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 450