Book Title: Sthanang Sutra Ppart 02
Author(s): Devchandra Maharaj
Publisher: Mundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
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माता स्थावरकायपणामां पण बहुलताए क्षीण कर्मपणाथी अल्प कर्मवाळा, वळी जेने तप अने वेदना नथी ते सिद्ध थया. उत्तम हाथी उपर बेठेला मरुदेवी मातानुं आयुष्य समाप्त धये सिद्धपणुं थयेल छे. (४) आ दाष्टतिक (उपमा अने उपमेयरूप) अर्थोनुं सर्व प्रकारे समानपणुं विचारखुं नहि. एओने देश ( अमुक अंश ) रूप दृष्टांतपणाथी विचार. ) कारण के मरुदेवीमाताने 'मुंडे भवित्ते 'त्यादि० केटलाएक विशेषणो घटी शकता नथी पण फळथी सर्वथा समानपणुं घटी शके छे. ( सू०२३५ )
पुरुपविशेषोनी अंतक्रिया कही, हवे तओना ज स्वरूपने निरूपण करवा माटे दातिक छवीश सूत्रो कहे छे
चत्तारि रुक्खा पं० तं० - उन्नए नामेगे उन्नए १, उन्नते नाममेगे पणते २, पणते नाममेगे उन्नते ३, पणते नाममेगे पणते ४, १। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पं० तं०-उन्नते नामेगे उन्नते, तव जाव पणते नामेगे पणते २ । चत्तारि रुक्खा पं० तं०- उन्नते नाममेगे उन्नतपरिणए १, उore नाममेगे पणतपरिणए २ पणते णाममेगे उन्नतपरिणते ३ पणए नाममेगे पणतपरिणए ४, ३ एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पं० तं०-उन्नते नाममेगे उन्नतपरिणते चउभंगो ४, ४ । चत्तारि रुक्खा पं० तं०- उन्नते नामेगे उन्नतरूवे तहेव चउभंगो ४, ५ । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पं० तं०
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