Book Title: Sthanang Sutra Ppart 02
Author(s): Devchandra Maharaj
Publisher: Mundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Xxxxx . ४- श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥ ३३६ ॥४ ४ स्थान काध्ययने उद्देशः? उन्नतादि सू० २३६ xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx एक शरीरादिधी नीच पण मोटा मनवाळो छ ३, कोई एक शरीरादिथी नचि अने हलका मनवाळो ४ (७). एवी रीति (८) संकल्प-विचार, (९) प्रज्ञा-सूक्ष्म अर्थनी विचारणा, (१०) दृष्टि-नजर अथवा अभिप्राय, (११) शीलाचार-स्वाभाविक आचार, (१२) व्यवहार-परस्पर देवुलेQ विगेरे, (१३) पराक्रम. आ मन प्रमुख सात भांगामां एक पुरुषजातरूप आलावा जाणवो परंतु प्रतिपक्ष (वृक्ष) सूत्र नथी. चार प्रकारना वृक्षो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-कोई एक वृक्ष शरीरथी-द्रव्यथी ऋजु-सरल अने भावथी पण सरल-उचित फलने देनार १, कोई एक वृक्ष शरीरथी सरल पण भावथी वक्र-विपरीत फलने देनार २, कोई एक वृक्ष शरीरथी वक्र पण भावथी सरल-उचित फलने देनार ३ अने कोई एक वृक्ष शरीरथी वक्र अने भावथी पण वक्र-विपरीत फलने देनार छे ४, एवी रीते चार प्रकारना पुरुषो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-कोईक पुरुष शरीरादि बाह्य स्वरूपथी सरल अने अंतरथी पण सरल छे १, कोईक पुरुष शरीरादिथी सरल पण अंतरथी वक्र-मायावी छे २, कोईक पुरुष शरीरादिथी वक्र पण अंतःकरणथी सरळ छे ३ अने कोईक पुरुष शरीरादिथी वक्र अने अंतःकरणथी पण चक्र छे ४. एवी रीते जेम उन्नतप्रणत शब्दवडे गमो-आलावो कहेल छ तेम ऋजु अने वक्र शब्दबडे पण कहेवा यावत् पराक्रम पर्यंत चार चार भांगा कहेवा. एम १३ सूत्रो कहेवा (२६) (सू०२३६) टीकार्य-चत्तारि रक्ख' त्यादि० सूत्रो सरळ छे. वृश्च्यते-छेदाय छे ते वृक्षा, विवक्षावडे भगवाने ते चार प्रकारना कहेला छे, तेमा उन्नत-द्रव्यथी ऊंचो, 'नामे ति० संभावनामां अथवा वाक्यालंकारमा छे. एक-कोईक वृक्षविशेष, ते ज वृक्ष वळी जात्यादि भावथी पण ऊंचो अशोकवृक्ष विगेरे, आ एक भांगो. कोई एक अन्य वृक्ष द्रव्यथी ज ऊंचो अने प्रणत-जात्यादि xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx ॥३३६ ॥ For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 450