Book Title: Sthanang Sutra Ppart 02
Author(s): Devchandra Maharaj
Publisher: Mundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh

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Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीस्था नाङ्गसूत्र सानुवाद ॥ ३३८ www.kobatirth.org पडिमा पडिवन्नस्स णमणगारस्स कप्पंति चत्तारि भासातो भासित्तए तं०-जायणी पुच्छणी अनवणी पुटुस्स वागरणी । सू० २३७, चत्तारि भासाजाता पं० तं०- सच्चमेगं भासज्जायं बीयं मोसं तइयं सच्चमोतं चउत्थं असच्चामोस ४ । सू० २३८, चत्तारि वत्था पं० तं० - सुद्धे णामं एगे सुद्धे १ सुद्धे णामं एगे असुद्धे २ असुद्धे णामं एगे सुद्धे ३ असुद्धे णामं एगे असुद्धे ४, एवामेवारि पुरिसजाता पं० तं० - सुद्धे णामं एगे सुद्धे चउभंगो ४, एवं परिणतरूवे वत्था सपविक्खा, चत्तारि पुरिसजाता पं० तं० - सुद्धे णामं एगे सुद्धमणे चउभंगो ४, एवं संकप्पे जाव परक्कमे । सू० २३९ मूलार्थ:-बार प्रतिमाने प्रतिपन्न स्वीकारेल अनगारने चार भाषा बोलवा मांटे कल्ये छे, ते आ प्रमाणे- अन्न, पाणी विगेरेनी याचना माटे जे बोल ते याचनी, मार्ग विगेरेनुं पूछवं ते प्रच्छनी, अवग्रह ( वसति) विगेरेनी याचना अर्थात् 'हूं थोडा बखत अहं रहूं छु' एम गृहस्थने जणावयुं ते अनुज्ञापनी अने कोईए पूछेल अर्थनुं कहेनुं ते वागरणी-व्याकरणी भाषा. (सू० २३७) चार प्रकारे भाषा कहेली छे, ते आ प्रमाणे- सर्वने हितकर ते सत्य ए प्रथम भाषा, बीजी मृपा-असत्य भाषा, त्रीजी सत्यमृषा - मिश्रभाषा अने चोथी असत्यमृषा-व्यवहारभाषा. ( सू०२३८) चार प्रकारना वस्त्रो कहेलां छे, ते आ प्रमाणे- कोई एक For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir *************** ४ स्थान काध्ययने उद्देशः १ प्रतिभावतः पानकानि भाषाः शु द्धादिः सू० २३७-३९ ॥ ३३८ ॥

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