Book Title: Sthanang Sutra Ppart 02 Author(s): Devchandra Maharaj Publisher: Mundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh View full book textPage 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीस्था नाङ्गसूत्र सानुवाद ॥ ३३१ ॥ www.kobatirth.org ॥ अथ चतुर्थस्थानकाध्ययने प्रथमः उद्देशः ॥ त्रीजा अध्ययननुं व्याख्यान करायुं, हवे संख्याना क्रमवडे संबंधमां आवेलुं चार स्थानक नामनुं चोथुं अध्ययन शुरू थाय छे. आ अध्ययननो पूर्वना अध्ययन साथै आ प्रमाणे संबंधविशेष छे. पूर्व अध्ययनमां विचित्र प्रकारे जीव अने अजीव द्रव्यनां पर्यायो कह्या, आ चोथा अध्ययनमां पण ते ज कहेवाय छे, तेवा संबंधवडे प्राप्त थयेल आ अध्ययनना चार अनुयोगद्वारवाळा चार उद्देशकना सूत्रानुगममां प्रथम उद्देशकनुं पहेलुं सूत्र आ प्रमाणे छे चत्तारि अंतकिरियातो पं० तं०- तत्थ खलु पढमा इमा अंतकिरिया - अप्पकम्मपच्चायाते यावि भवति, सेणं मुंडे भवित्ता अगारातो अणगारियं पव्वतिते संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले हे तीरट्ठी उवहाणवं दुक्खक्खवे तवस्सी तस्स णं णो तहप्पगारे तवे भवति णो तहपगारा वेणा भवति तहप्पगारे पुरिसजाते दीहेणं परितातेणं सिज्झति बुज्झति मुञ्चति परिणिव्वाति सव्वदुक्खाणमंतं करेइ, जहा से भरहे राया चाउरंतचक्कवही, पढमा अंतकिरिया १, अहावरा दोच्चा अंताकरिया, महाकम्मे पञ्चाजाते यावि भवति, से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अण For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir X ४ स्थान काध्ययने उद्देशः १ अन्तक्रियाः सू० २३५ ॥ ३३१ ॥Page Navigation
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