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५ स्याद्वाद का आश्रय
द्रव्यानुयोग में - अनेक सांगोपांग पद्धत्ति से विश्व का निरूपण जैन शास्त्रो मेंजैन शासन में है । प्रत्येक पद्धत्ति का निरूपणे स्वतंत्र शास्त्र रूपतया भी किये गये हैं । उसी तरह - चरणानुयोग में भी चरण विषयक स्वतंत्र - स्वतंत्र अनेक पद्धतियाँ बताई गई । द्रव्यानुयोग दृष्टि से विश्व का स्वरूप निरूपण अनेक दृष्टिओं से अनेक पद्धत्तियों से किया गया है । तद्दन विभिन्न विभिन्न स्वरूप के मालूम पडने पर भी स्याद्बाद से परस्पर के संबन्ध बैठ जाता है । उसी तरह से चरणानुयोग दृष्टिसे कई पद्धत्तियाँ आत्मगुण विकास प्रक्रिया से बताई गई है । इस ग्रन्थ में दृष्टान्त तया द्रव्यभाव स्तव, और दान-शील तप-भाव को घटा कर बह बताया गया है । उसी तरह से कइ प्रकार की पद्धत्तियाँ शाखों में बताई गई है । ६ वेद शास्त्र विषयक विचार
इस ग्रन्थ में जिन प्रतिमा पूजा में हिंसा अहिंसा का विचार किया गया है । यज्ञार्थ की हिंसा अहिंसा विषयक विचार भी बताया है। वेद संबंधी पौरुषेय- अपौरुषेय की प्रासङ्गिकचर्चा भी की गई है । उसविषय में धर्म शास्त्रीयता आदि के विषय में (गुजराती) भावार्थ चन्द्रिका के प्रास्ताविक में कुछ मौलिक बातें लीखी जायेंगी ।
७ शारीरिक निर्बलता आदि कारणों से शुद्धिपत्रक नहीं दिया हैं। विज्ञवाचकवर्ग स्वयं योग्य सुधार समझकर वांचने की कृपा करें। अनेक स्खलनादि के लीए क्षमा याचना शिवाय दूसरा उपाय नहि । कृपया हिन्दी भाषा सुधार कर बांचीये ।
राजकोट-१ फागुन शुक्ला ५ मी
२०२७
प्रभुदास बेरदास पारेख