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प्रदार्थ स्वरूप का निरूपण द्रव्यानुयोग में बताया गया है। उस पदार्थ का आत्मगुण के विकास आदि में उपयोग आदि चरणानुयोग में बताये गये है। गणितानुयोग और कथानुयोग उपरोक्त दो मुख्य अनुयोगों के सहकारी अनुयोगें मालूम पडतें हैं । पदार्थ का स्वरूप संख्या-नाप-वजन-प्रमाण आदि के गणित के नियमपूर्वक बताये जा सकते है । उसी तरह-चरणानुयोग से बताई गई बातें दृष्टान्त और कथा से प्राहाग्राह्यतया बता दी जा सकते है । कथायें दो प्रकार की रहती है। १ पतन विषयक, और गुण विकास विषयक । इसी तरह सकल शास्त्र रचना चार मुख्य अनुयोगों में व्यवस्थित रखी गई मालूम पडती हैं। ____ दृष्टान्त–पत्थर क्या है ! एक नक्कर पदार्थ है । द्रव्यानुयोग में बात आ .. गई। पत्थर की संख्या आदि बताई दी जावे, वह गणितानुयोग से बतायां जावे ।। जीवन में पत्थर का अच्छा और बुरा कौनसा उपयोग हो सके? यह चरणानुयोग का, और किसने कैसा उपयोग किया ! बह कथानुयोग का विषय बन जाय । गणित विना पदार्थ का योग्य स्वरूप दिखाया न जा सके, और कथा बिना चरण का पतन और विकास का स्वरूप असरकारक तया समझाया जा न सके । . आत्मा कैसा पदार्थ है ? परमाणु कैसा पदार्थ है ? यह द्रव्यानुयोग से बताया जा सके। और गणित के नियम से संख्या-प्रमाण-आदि बताये जा सके। और चरणानुयोग से आत्मा का विकास और पतन के स्वरूप बताये जा सके । कथानुयोग से असर कारकपना दिखाया जावे । इस हेतु से चार अनुयोग की निरूपण पद्धत्ति खूब व्यवस्थित पद्धत्ति भी मालम पडेगी।
आध्यात्मिक गुण विकास के कई स्वरूप दिये गये है। जो मोक्ष की प्राप्ति में ... उपयोगी होकर, मोक्षमार्ग रूप बना रहे, जिसके नाम-धर्म, रत्नत्रयी, चरण-करण, चारित्र, आध्यात्मिक विकास, मात्मिकगुण विकास, मोक्षमार्ग, आदि कई नाम प्रसिद्ध है।
तो- स्तव परिज्ञा का विषय - चरणानुयोग की साथ संबन्ध रखता है। ४ दो प्रकार के स्तव
भाव स्तव का लक्षण-अद्वारह हजार शीलांग का पालन बताया है। और
द्रव्य स्तव का लक्षण-भाव स्तव की स्थिति प्राप्त करने के लिए जो जो किये जावे, वे सभी द्रव्य स्तव । उसमें जिन प्रतिमा पूजा से लेकर सभी का समावेश हो जाता है। सम्यग् दर्शन की प्राप्ति, देश विरति का पालन, मादि उसमें समाविष्ट किये गये ।