Book Title: Stav Parigna
Author(s): Prabhudas Bechardas Parekh
Publisher: Shravak Bandhu

Previous | Next

Page 8
________________ [हिन्दी] भावाऽर्थ चन्द्रिका-युक्त स्तव-परिज्ञाका विषयानुक्रम नाम अवचूरिकार का मंगलादि प्रस्तावना ग्रन्थ प्रारंभ द्रव्य-भाव-स्तव - व्याख्या बिन भवन कराने का विधि भूमि-शुद्धि काष्ठादि-दल-शुद्धि कर्मकर वर्ग को संतोष-प्रदान बिंब प्रतिष्ठा विधि श्री संघ-पूजाका अति महत्त्व श्री संघ का महत्व आगे का पूजा विधि पूजा विधि शास्त्र विहित है प्रधान- अप्रधान द्रव्य स्तव • प्रधान द्रव्य स्तव की व्याख्या द्रव्य-भाव स्तव में औचित्य द्रव्य स्तव में भाव की अल्पता सौषध - विनौषध से रोग हरण द्रव्य स्तव से भाव स्तव बडा है अट्ठारह सहस्त्र शीलांग स्तदों से लाभ भाव स्तव का स्वरूप अट्ठारह शोलांग रूप-भाव- स्तव ७ उदारता का फल और सु-आशय की वृद्धि ८ जिन बिंब कराने का विधि ९ 1 पृष्ठ नाम २ शीलांगों का स्वरूप २ २ ३ ४ ५ ६ १.० ११ १२ १३ १४ १५ १६ पृष्ठ २५ शीलांगो का अखंडपना २७ उसमें सूत्र प्रामाण्य ३० आज्ञा से आराघकभाव ३१ उत्सूत्र प्रवृत्ति से कर्म बन्ध ३२ गीतार्थ - निश्रित- मुनि ३३ गीतार्थ की और तन्निश्रित की ३४ विरतिभाब का एकपना ३५ मुनिपना के सच्चे गुण ३६ तैलपात्र घरका और - राधा वेधकरका दृष्टान्त ३८ ३९ ४० ४१ ४२ ४३ २१ २२ भाव साधु सुवर्ण के गुण चार प्रकार से परीक्षा सु-साधु-स्वरूप साधु परीक्षा द्रव्य स्तव से भाव स्तव की प्राप्ति ४५ द्रव्य और भाव स्तव का परस्पर संबन्ध ४६ ४७ ४८ ४९ १७ अनुमोदना रूप मुनि कृत द्रव्य स्तव ९८ प्रभु से अनुमोदितता का विचार २० द्रव्य स्तव की अनुमोदना करण में कार्य रहता है जिन भवनादि-प्रभु सम्मत २२ उपचार - विनय-द्रव्य- स्तवरूप २२ २३ मुनि की चैत्य वंदना मुनि को गौण भाव से द्रव्य स्तव ५० ५१ ५२ ५३ ५४

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 210