Book Title: Sramana 2008 07 Author(s): Shreeprakash Pandey, Vijay Kumar Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi View full book textPage 8
________________ कीट-रक्षक सिद्धान्त का नैतिक आधार : ३ कीट-मुक्त आवास आधुनिक जीवन शैली का पर्याय बन गया। दूसरी ओर इन्हीं प्राणियों को खाद्य-सामग्री के रूप में मनुष्य की स्वाद लिप्सा का शिकार होना पड़ा। मेढक और केचुएँ का अचार, साँप-केंकड़े के कटलेट्स तो विदेशी व्यंजनों में शीर्ष स्थान पर हैं, जिनका सबसे बड़ा निर्यातक भारत है। किन्तु कीटों के इस संहार ने जिस खतरे को उत्पन्न किया वह इतना भयावह है कि स्वयं मनुष्य को ही लीलने के लिए तैयार है। कीटों के विनाश से जैविक-चक्र में जो व्यवधान आते हैं वे अन्य प्राणियों में विकृतियाँ उत्पन्न करते हैं और वे विकृतियाँ अन्य प्राणियों में जैविक-असंतुलन उत्पन्न कर देती हैं। इस असंतुलन का सीधा प्रभाव स्वयं मनुष्य पर विपरीत रूप में पड़ता है। फलत: मनुष्य एक स्व-विनाशी प्राणी बन जाता है जिसके लिए वह स्वयं उत्तरदायी है। जैन दर्शन व्यक्ति को इस स्व-विनाश से सुरक्षित होने का मार्ग प्रशस्त करता है। प्राणियों में सारभूत समता स्वीकारते हुए जैन दर्शन का मानना है कि प्राणी कैसा भी हो- विषैला, हिंसक अथवा भयावह, वह मनुष्य के द्वारा अहिंस्य है। अहिंसा इसलिये, क्योंकि उसके प्रति हिंसा किये जाने पर वह वेदना पायेगा जो कर्ता में कर्मबंध उत्पन्न करेगा। अत: प्राणियों की हिंसा से व्यक्ति को विरत रहना चाहिए।१० यहाँ यह जिज्ञासा उत्पन्न हो सकती है कि वेदना के कारण हिंसा नहीं की जानी चाहिये, ठीक है, किन्तु जो एकेन्द्रिय जीव हैं उन्हें किसी संवेदना या कष्ट का अनुभव नहीं होता है जैसा कि एक से अधिक इंद्रिय रखनेवाले प्राणी को होता है। अतः एकेन्द्रिय प्राणी को अहिंस्य क्यों माना जाय? समाधान स्वरूप जैन धर्म-दर्शन कहता है कि चाहे एकेन्द्रिय प्राणियों में वेदनानुभूति की क्षमता कम होती हो फिर भी वे अवध्य हैं, क्योंकि प्राणी होने के कारण उनमें वेदना होती है चाहे ज्ञातरूप में वह प्रत्यक्ष न होती हो, जैसे अंधे, बधिर, मूक और पंगु मनुष्य को दुःख देने पर उसे कष्ट का अनुभव होता है वैसे ही अन्य इंद्रियों के न होने पर भी एकेन्द्रिय जीव को कष्ट होता है। पृथ्वी के कीटादि को कष्ट देने पर उन्हें होने वाली वेदना दिखाई नहीं देती है, किन्तु उन्हें वह वैसे ही अनुभूत होती है जैसे एक जर्जरित पुरुष के सिर पर किसी बलिष्ठ व्यक्ति के प्रहार करने पर उस पुरुष को वेदना की अनुभूति होती है।१२ मनुष्य के भौतिक बहुमुखी विकास के जहाँ सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं वहीं कुछ नकारात्मक उपलब्धियाँ भी हुई हैं। इनमें से प्रमुख हैं- मनुष्य में स्वयं को 'विशेष' प्राणी मानने का भाव, जिसके कारण उसने अपने जीवन, इच्छा एवं प्रयोजनों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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