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उन दिनों महान आचार्य दौलामस का संघ तक्षशिला में आया हुआ था सेनापति अंशकृतस व राजा आम्भीक साधुओं के पास गये.....
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अरे। इन सन्यासियों के पास नवस्त्र, न भोजन, न रहने का मकान, ये कैसे जीवित रहते होंगे ? इन्हें सम्पति का लालच देना चाहिए, सन्यासी जी ! महान सम्राट सिकन्दर ने आपको दरबार में बुलाया है, वह आपके अभावों को दूर कर देंगे
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सामने शिलाखंड पर आचार्य
वत्स ।
सुखी रहो।
उनसे निवेदन कीजिए
वे आचार्य श्री दौलामस के सामने उपस्थित हुए और
आचार्य श्री, प्रणाम स्वीकार कीजिये ।
सम्राट के दूत । जिसे तू सम्पत्ति कहता है उसे हम पाप का कारण समझकर छोड़ चुके हैं। जिसे तू अभाव कहता है वह हमारी उपलब्धि है । लौट जा ।
मृत्यु का भय किसे दिखा रहा है। जन्म-मरण में जो समान भाव रखते हैं वही साधु होते हैं। आत्मा अमर है और शरीर से हमें प्यार नहीं है।
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आचार्य श्री । संसार के महान सम्राट सिकन्दर ने आपको राज दरबार में बुलाया है। वह आपको असीम सम्पत्ति देगा। आपके अभाव दूर कर देगा
आचार्य श्री सम्राट की आज्ञा पालन न करने का परिणाम आपको बता देना अपना कर्तव्य
समझता हूं। मृत्यु दण्ड..
भी. हो... संकृता .....