Book Title: Siddhhemchandra Shabdanushasanam Part 01
Author(s): Chandraguptasuri
Publisher: Mokshaiklakshi Prakashan
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________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् ग घ ङ, च छ ज झ ञ,ट. ठ ड ढ ण,त थ द ध न,प फ ब भ म // 12 // __ आद्य-द्वितीय-श-ष-सा अघोषाः / 11 / 13 // वर्गाणामाद्यद्वितीया वर्णाः श-ष-साश्च 'अघोषाः' स्युः / क ख, च छ, ट ठ, त थ, प फ, श ष स // 13 // . अन्यो घोषवान् / 111114 // अघोषेभ्योऽन्यः कादिर्वर्णो घोषवान् स्यात् / ग घ ङ, ज झ ञ, ड ढ ण, द ध न, ब भ म, य र ल व, ह // 14 // य-र-ल-वा अन्तस्थाः / 111115 // एते 'अन्तस्थाः' स्युः // 15 // अं-अ-क-प-श-ष-साः शिट् / 111116 // अ-क-पा उच्चारणार्थाः, अनुस्वार-विसर्गौ वज्र-गजकुम्भाऽऽकृती च वी, शष-साश्च शिटः स्युः // 16 // तुल्यस्थानाऽऽस्यप्रयत्नः स्वः / 1 / 1 / 17 // स्थानं कण्ठादि “अष्टौ स्थानानि वर्णानामुरः कण्ठः शिरस्तथा // जिह्वामूलं च दन्ताश्च नासिकौष्ठौ च तालु च // 1 // " आस्ये प्रयत्नः-आस्यप्रयत्नः, स्पृष्टतादिः / तुल्यौ- वर्णान्तरेण सदृशौ / स्थानाऽऽस्यप्रयत्नौ यस्य, स वर्णस्तं प्रति स्वः स्यात् / तत्र त्रयोऽकारा उदात्ता-ऽनुदात्त-स्वरिताः, प्रत्येकं सानुनासिक-निरनुनासिकभेदात् षट्, एवं दीर्घ-प्लुतौ इति ‘अष्टादश भेदा अवर्णस्य', ते सर्वे कण्ठस्थाना विवृतकरणाः परस्परं स्वाः / एवम्-इवर्णास्तावन्तस्तालव्या विवृतकरणाः स्वाः / उवर्णा ओष्ठ्या विवृतकरणाः स्वाः / ऋवर्णा मूर्द्धन्या विवृतकरणाः परस्परं स्वाः / लवर्णा दन्त्या विवृतकरणाः परस्परं स्वाः / सन्ध्य
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