Book Title: Shuklyajurved Madhyamdiniya Samhita
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Page 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संहि. तवन्युपदधामिनातव्यस्यवधाय // विश्वाणयुस्त्वाशायऽउ पू.अ. पदधामिचितस्त्थो चितोभृगूणामङ्गिरसान्तपसातप्प्यहम् 18 2] शम्मासि / शर्मास्यवधूत रक्षावधूताऽअरांतयोदित्यास्त्व गसिप्प्रतित्वादितिर्वेत्तु // धिषणासिपर्वतीप्प्रतित्वादित्यास्त्वग्ग्वैत्तु / दिवस्वमनीरसिधिषणासिपार्वतेयीप्पतित्वापर्वतीवेत्तुधान्यमसि / 19 धान्यमसि / धिनुहिदेवान्प्राणायत्त्वोदानायत्वाध्यानायत्वा / दीग्र्घामनुपसितिमायुषेधान्देवोवः सविताहिरण्यपाणिप्प्रतिग। भणात्वच्छिद्रेणपाणिनाचक्षुषत्वामुहीनाम्पयोसि 20 [3] देव / स्यत्वा। सवितुष्प्प्रेसवेश्विनौर्बाहुभ्याम्पूष्ण्णोहस्ताक्याम्। सं MY For Private and Personal Use Only

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