Book Title: Shuklyajurved Madhyamdiniya Samhita Author(s): Publisher: View full book textPage 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir मिशमीष्ष्व // हविष्कुदेहिहविष्कुदेहि१५कुक्कुटोसि। कुक्कुटोसिम धुजिब इषमूर्जमावदुत्वयाव्य सङ्घात सङ्घातजेष्म्मवर्षवृद्धमसि पतित्वावर्षवृद्धवेत्तुपरांपूरक्षऽपरांपूताऽअरांतुयोपहरक्षोवायु बोधिविनक्तुदेवोव सविताहिरण्यपाणुिप्प्रतिगृणात्वच्छिद्रेणपा णिना 163] धृष्टिरसि ।धृष्टिरस्यपग्नेिऽअग्निमामादअहिनिष्क ध्यादसेधादेवयज॑वह॥ध्रुवर्मसिपृथिवी हिब्रह्ममुवनित्वाक्षत्रुवनि सजातुवन्युपंदधामिनातृव्यस्यबधार्य 17 अग्नुब्रह्म। गृमणी वधुरुणमस्युन्तरिक्षब्रह्मवनित्त्वाक्षत्रुवनिसजातुवन्युपेदधा / मिनातृव्यस्यवधायाधुब्रमसिदिवहिब्रहमुवनित्त्वाक्षत्रुवनिसजा 杉杉於於杂杂杂杂杂杂杂杂杂杂杂杂杂杂杂杂杂杂杂幹部將於染整整落於警 For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 479