Book Title: Shrutsagar Ank 2012 08 019 Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba View full book textPage 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अगस्त २०१२ (संपादकीय अनन्त उपकारी सर्वज्ञ तीर्थंकर भगवन्तों ने संसार के समस्त जीवों को अनन्त सुख की प्राप्ति करने हेतु धर्मतीर्थ की स्थापना की. सर्वज्ञ भगवन्तों के मुख से निकली धर्मदेशना को सुनकर पूज्य गणधर भगवन्तों ने द्वादशांगी द्वारा महासमुद्र की रचना की. इस महासमुद्र में से पूर्वाचार्यों एवं गीतार्थ गुरुभगवन्तों ने आत्म कल्याणकारी दार्शनिक पदार्थों के अनमोल रत्नों से भरपूर श्रुत साहित्य की रचना कर संसार के समक्ष प्रस्तुत किया है. जैन साहित्य के गौरवमय विशाल भण्डार में अनेक ऐसे ग्रन्थ हैं जिनका अध्ययन करके आत्मकल्याण किया जा सकता है. वीरान वन में थके-हारे मुसाफिर को अपनी पिपासा शान्त करने हेतु जल की एक बूंद भी मिल जाए तो वह कितना आनन्द और संतोष का अनुभव कर सकता है, उसी प्रकार पूज्य गुरुभगवन्तों के सान्निध्य में इस अगाध श्रुतसागर में से थोड़ा भी जानने-सुनने का अवसर मिले तो यह हमारे लिये परम सौभाग्य की बात होती है. इस वर्षावास में परम पूज्य राष्ट्रसंत आचार्य भगवंत श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा में बिराजमान हैं और प्रत्येक रविवार को विभिन्न विषयों पर हृदयस्पर्शी प्रवचनों के द्वारा उपस्थित श्रोताओं को परमात्मा महावीर की वाणी का रसास्वाद करवा रहे हैं. पूज्य आचार्यश्री अपने व्याख्यानों में जैनधर्म के मूल सिद्धान्तों को इतनी सरल व प्रभावक भाषा में प्रस्तुत करते हैं कि सामान्य व्यक्ति भी आसानी से समझ सके. पूज्यश्री अनेक महात्मा और महासतियों के जीवन प्रसंगों की अद्भुत कथाओं के माध्यम से मूल पदार्थों को समझा रहे हैं, जिससे सुनने वाले पर सीधा प्रभाव पड़ रहा है. जब से पूज्य आचार्यश्री के सुमधुर प्रवचन शृंखला में परमात्मा महावीर की वाणी सुनने का अवसर मिला है, तब से मन में यह प्रश्न स्वतः हो रहा है कि वास्तव में हमने आज तक इस संसार की कितनी यात्राएँ की | होंगी? कितनी अकल्पनीय कष्ट-यातनाएँ सहन की होंगी? क्या अब भी करनी हैं? भावी भव में मेरी क्या गति होगी? नहीं! अब मुझे पूज्य आचार्य भगवन्त ने अन्तर्जगत की यात्रा करने का मार्ग बता दिया है, मैं अपने अन्तर्जगत की यात्रा करूँगा. पूज्यश्री ने पाप के जन्मस्थान को भी बता दिया है, मैं उनसे दूर रहूँगा. आपश्री ने आत्म प्रदेश में कर्म बन्धन और उससे मुक्ति का मार्ग भी बता दिया है. मैं अब यह प्रयास करूँगा कि कर्मों का बन्धन नहीं हो पाए. इसके लिये पूज्य आचार्य भगवन्त ने बहुत ही सुन्दर बात कही है कि स्वयं पर स्वयं का अनुशासन रखो. पूज्यश्री के प्रवचनों ने हमारी दृष्टि खोल दी है. अब समय आ गया है कि इस चातुर्मास की अवधि को अपने जीवन के लिये सर्वोपयोगी बनाएँ. तो आईए! पूज्य आचार्य भगवन्त ने परमात्मा महावीर की वाणी के माध्यम से हमारे जीवनोपयोगी जो! मार्ग बताया है, उसे अपनाएँ एवं अपना वर्तमान व भविष्य का जीवन सफल करें. लेखक डॉ. हेमन्त कुमार સ્વ. રતિલાલ મફાભાઈ શાહ (अनुक्रम लेख १. संपादकीय २. जैनधर्म व साहित्य : जैनेतर विद्वानों का अभिमत 3.नधभनी २क्षा ठे ૪. આચાર્યશ્રી કલાસસાગરસૂરિ જ્ઞાનમંદિર સંક્ષિપ્ત અહેવાલ ५. बंधन और मुक्ति - प्रवचन सारांश ६. पुण्य का जन्मस्थान - प्रवचन सारांश ७. स्वयं पर स्वयं का अनुशासन - प्रवचन सारांश ८. विश्व कल्याण प्रकाशन सूचि ૯. રાસ રસાળ १०. समाचार सार डॉ. हेमन्त कुमार डॉ. हेमन्त कुमार डॉ. हेमन्त कुमार श्रुतसरिता (बुकस्टॉल) કનુભાઈ એલ. શાહ डॉ. हेमन्त कुमार For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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