________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भावना एवं भक्ति से भगवान तक की यात्रा - प्रवचन सारांश परम पूज्य आचार्य भगवंत ने “भावना एवं भक्ति से भगवान तक की यात्रा" के संबन्ध में कहा कि किसी भी क्रिया का मूल भावना है और भावना का आधार सम्यक श्रद्धा है. जहाँ भावना है वहीं भक्ति है, जहाँ भक्ति है वहीं भावना है. निर्मल, निर्दोष भावना से भक्ति करेंगे तो भगवान तक स्वयं पहुँच जाएंगे. अनेक महापुरुषों का उदाहरण देते हुए पूज्य आचार्यश्री ने बताया कि किस प्रकार उन लोगों ने परमात्मा की शुद्ध भावना पूर्वक भक्ति की और स्वकीय मानव जीवन को सफल बनाया. उन्होंने कहा कि हमारा इतिहास ऐसे अनेक महापुरुषों के जीवन चरित्र से भरा है, जिन्होंने धर्म की रक्षा के लिये अपने प्राण तक को न्यौछावर कर दिया. अटूट श्रद्धा होगी तभी भगवान की भक्ति कर सकते हैं. पूज्य राष्ट्रसंत ने अनेक धर्ममय भावना वाले व्यक्तियों के उदाहरण देते हुए भक्ति और भावना को बहुत सुन्दर ढंग से समझाया. उन्होंने कहा संसार का सुख क्षणिक सुख है, मोक्ष का सुख अनन्त सुख है. सांसारिक सुख के लिये अर्जित धन में सभी का भाग होता है किन्तु आध्यात्मिक सुख के लिये अर्जित धन स्वयं के लिये होता है, इसमें किसी का भी भाग या हिस्सा नहीं होता है. आप सांसारिक सुख की पूर्ति में विश्वास करते हैं, डॉक्टर, वकील, व्यापार आदि में विश्वास करके जो सुख पाते हैं, उससे अधिक सुख परमात्मा की वाणी में विश्वास करने से मिलेगा; एक बार विश्वास करके देखिये! समर्पण में पाने की लालसा, भावना नहीं होनी चाहिए, जबतक कुछ पाने की लालसा रहेगी तबतक संपूर्ण समर्पण नहीं होगा. संपूर्ण समर्पण करने के लिये अहंकार, लोभ, मान, माया आदि का त्याग करना होगा, किसी भी प्राणी को किसी भी प्रकार का कष्ट न हो इसका ध्यान रखना होगा. यह सब सामायिक, स्वाध्याय, चिन्तन आदि से प्राप्त हो सकता है. यह आत्मिक साधना से प्राप्त धन है, इसमें से कोई भी बाँट नहीं सकता है. सामायिक से प्राप्त आध्यात्मिक शक्ति के सहारे हम अपनी भावना को निर्मल, शुद्ध बना सकते हैं. निर्मल भावना से परमात्मा की भक्ति करें, उनके प्रति समर्पण करें, आप स्वयं भगवान बन जाएंगे. जिन्होंने समर्पण कर दिया है उन्हें कोई भय नहीं है, जहाँ भय नहीं है वहीं मुक्ति है, जहाँ मुक्ति है वहाँ भय नहीं है. जो मुक्त आत्मा है वही मुक्ति दिला सकते हैं. जो स्वयं मुक्त नहीं हैं वे मुक्ति कैसे दिला सकते हैं? जो मुक्त हैं उनकी शरण स्वीकार करें, अन्तर की शुद्ध भावना से समर्पण करें, श्रद्धा से भक्ति करें, आप की मुक्ति अवश्य निश्चित हो जाएगी. जीवन के अनादि अनन्त जन्म-मरण के चक्र से छुटकारा मिल जाएगा. मन में सदैव शुद्ध भावना रखें आने वाला भव सुधर जाएगा. केवल श्रद्धा और भक्ति के सहारे अनन्त आत्मा मुक्त हो गये हैं. आप भी मुक्त हो जाएंगे. (रविवारीय शिक्षाप्रद मधुर प्रवचन शृंखला ता. 29-07-2012, पंचम शिविर, कोबा) प्रस्तुतकर्ता : डॉ. हेमन्त कुमार BOOK POST अंक प्रकाशन सौजन्य : श्रीमती विद्याबेन किशोरभाई चालीस हजार है. श्री केतनभाई के. शाह मल्टीकेम कोर्पोरेशन 3री मंजिल मोतीलाल सेन्टर आश्रम रोड, अहमदाबाद. For Private and Personal Use Only