Book Title: Shrutsagar Ank 2012 08 019
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वि.सं.२०६८-श्रावण बन्धन और मुक्ति - प्रवचन सारांश | परम पूज्य राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब ने बन्धन और मुक्ति के सम्बन्ध में कहा कि परमात्मा महावीर ने अपने धर्म प्रवचन में आत्मा के स्वरूप का वर्णन किया है. आत्मा का स्वरूप अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त चारित्र एवं अनन्त वीर्य युक्त है. किन्तु यह अनादिकाल से कर्म के बन्धन से घिरा हुआ है. सर्वप्रथम हमें इन कर्म बन्धनों से मुक्त होने का विचार करना होगा फिर परमात्मा महावीर द्वारा बताये उपाय करने होंगे तभी हम कर्म बन्धन से मुक्त हो सकते हैं. हम जैसा विचार करते हैं वैसे ही कर्मों का बन्धन होता है. मूलरूप से कर्म के आठ प्रकार हैं, इन्हीं आठ कर्मों के बन्धन में बंधकर हम बार-बार इस संसार का भ्रमण कर रहे हैं. अनेक योनियों में भटकते हुए आज इस मानव भव को प्राप्त किया है. पूज्यश्री ने कहा कि हम इन्द्रियों की वासना की पूर्ति हेतु तो कितने सारे उपाय करते रहते हैं किन्तु क्या कभी हमने आत्मा की मुक्ति का उपाय सच्चे मन से किया है? हमें तो यह भी पता नहीं है कि आत्मा का विषय सुख क्या है? मन का परिणमन जिस प्रकार का होगा वैसे ही कर्म बंधेगे. मन से राग-द्वेष को बाहर निकालना होगा तभी हम अपनी आत्मा के विषय सुख को प्राप्त कर सकेंगे. अपने सांसारिक दुःख दूर करने के अनेक उपाय करते हैं, किन्तु दुःख के कारण को दूर करने का कभी उपाय किया है क्या? हम दुःख के कारण को दूर करने का यदि उपाय करें तो दुःख ही नहीं होगा और जो सुखानुभूति होगी वही आत्मा का सच्चा सुख है. भगवान महावीर की आत्मा मोक्षगामी थी फिर भी उन्हें कितने भयंकर उपसर्गों को सहन करना पड़ा. श्री राम के राज्याभिषेक का समय महान तत्त्ववेत्ता महर्षि वशिष्ठ ने तय किया था फिर भी उन्हें चौदह वर्ष के वनवास में जाना पड़ा. क्या कभी विचार किया है कि यह सब कैसे हुआ? यह सब कर्मों का ही खेल है. कर्म अपना फल अवश्य देते हैं. कर्मों की निर्जरा करना सीखो. इसी संसार से अनन्त आत्माएँ मोक्ष में गई हैं, आप अभी तक यहीं हैं इसका कारण आप जानते हैं? कारण है राग और द्वेष. जैन कर्मवाद को समझने का प्रयास करें जैसे ही जैन कर्मवाद को समझ लेंगे वैसे ही मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा. संसार निर्दोष है, यह किसी को भी बन्धन या मुक्ति नहीं देता है. बन्धन और मुक्ति देते हैं हमारे विचार, हमारी मनोवृत्ति, हमारी इन्द्रियों के विषय, इन्द्रियों के विषयों का शमन ही कर्मों के बन्धन से मुक्ति का मार्ग है. वासना की जगह वात्सल्य की भावना धारण करें. विचार और आचरण शुद्ध करें, संसार से मुक्त हो जाएंगे. पुण्य का जन्म स्थान - प्रवचन सारांश पूज्य आचार्यश्री ने पुण्य की चर्चा करते हुए कहा कि पुण्य से विकास होता है. जिसका भी किसी भी क्षेत्र में विकास हो रहा हो आप समझ लेना की उसका पुण्य प्रबल है, पुण्य की प्राप्ति सरल नहीं है. अनन्तकाल तक यह आत्मा अनन्त दुःखों को सहन करते हुए आज मानव भव में आयी है. प्रभु महावीर ने कहा है कि इच्छा से दुःख का सहन करना पुण्य अर्जन का कारण बनता है और अनिच्छा से दुःख का सहन करना पाप का कारण बनता है. हमने अनन्त जन्मों में दुःखों को सहन करके पुण्य की प्राप्ति की और महावीर प्रभु के शासन में जन्म पाया है. पुण्य का जन्म स्थान कहाँ है यह हमें आज तक पता नहीं है. पुण्य का जन्म स्थान है भक्ति, सहनशक्ति, तप, परोपकार, प्रेम, भाईचारा, करुणा, दया, दान, धर्म आदि . दया और दान से ही धर्म की प्राप्ति होती है. महाराजा कुमारपाल ने पूर्व भव में परमात्मा की भक्ति की, पुष्प अर्पित किया. इस कार्य के कारण उनका पुण्य इतना प्रबल हुआ कि उन्हें अगले जन्म में राजा बना दिया. अनेक महापुरुषों का उदाहरण देते हुए पूज्यश्री ने कहा कि जन्म तो निर्धन परिवार में हुआ किन्तु पूर्व जन्म में अर्जित पुण्य के कारण वे आज आदर्श पुरुष बन गये हैं. इस भूमि से अनन्त आत्मा मोक्ष को गये हैं और अनन्त आत्मा दुर्गति में भी गये हैं. इन दोनों के पीछे पुण्य ही कारण है. जिसका जैसा पुण्य है उसे वैसा ही फल मिलता है. For Private and Personal Use Only

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