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वि.सं.२०६८-श्रावण
रविवारीय शिक्षाप्रद मधुर प्रवचन शंखला (शिबिर) के अंतर्गत प. पू. राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. की प्रवचन प्रसादी पर कवि हृदय की विनयांजलि
प्रस्तुति : मुकेशभाई एन, शाह, मुंबई तृतीय प्रवचन शिबिर
विषय : बंधन और मुक्ति हे मुक्तिदाता! गुरुवर, हमारी मुक्ति भी कब होगी? फंसे हुए है अनंत काल से आतम शुद्धि कब होगी? अष्टकर्म के बादल घीरे है, सुरज की आभा कब होगी? कैसे छुडाऊँ जड़की बाजी, आतम राजी कब होगी? नाच नाचु में जग के आगे, मदारी की भी बाजी कब होगी? भेडीयाँ बन के थर थर कांपू. शेर की सिद्धी कब होगी? प्रवचन पथ पर उसे कैसे पाऊँ, आतम ऋद्धि कब होगी?
चतुर्थ प्रवचन शिबिर
विषय : स्वयं पर स्वयं का अनुशासन
हे धीर सेनानायक, और सभी पर रोफ़ जमाया! अफ़सोस वही कि, स्वयं को कुछ भी न कर पाया! बाहर की दुनिया देखते देखते, अंदरको सदा ही भूलाया! मेरा कुछ भी नहीं है, फिर भी बाहर को ही मैंने अपनाया। कैसे लोर्ट में अपने राज्य में खुद का खजाना ना लूटाया! करुं कैसे मैं अनुशासित, अपने आप ही में राया! प्रवचन पथ पर गुरुवाणी से, स्थिर करो मुझे गुरुमाया!
पंचम प्रवचन शिबिर
विषय : भावना एवग भक्ति से भगवान की यात्रा!
हे भाव पुरुष ! भाव और भक्ति ही कलि में न्यारी संघयण छूटा, ध्यान है तूटा, भावना ही है सब से भारी तीर्थकर का अभी वियोग है, भरत की पृथ्वी सब से खाली नाम स्मरण और प्रभु की भक्ति, कलि में दे आज भी तारी सारे रस्ते अब तूट चूके है, भक्ति की केडी है फूलवारी खुदा से मिलती खुलके भक्ति, यही मंझिल है छोटी प्यारी प्रवचन पथ पर आगे बढाओ, प्रभुमिलन की यात्रा न्यारी!
સાધનાની કેડીએ આગળ વધતા સાધકો માટે સદ્ગુરુના વચનો દિવ્ય અંજનનું કામ કરે છે.
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