Book Title: Shrutsagar Ank 2000 01 010 Author(s): Manoj Jain, Balaji Ganorkar Publisher: Shree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba View full book textPage 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शाही स्वागत किया तो राज्यशासन के समक्ष धर्मशासन की महत्ता सिद्ध हुई. बस, यहीं से एक ओर मुगल शासन की व्यवस्था में महत्वपूर्ण बदलाव की शुरूआत हुई तो दूसरी ओर हिंदू-संस्कृति की गरिमा और हीरविजयसूरि की यशःकीर्ति ने ऊँची छलाँग भरी. इतिहास साक्षी है कि बादशाह अकबर का सबसे अधिक सार्थक उपयोग हीरविजयसूरि ने किया. वे अहिंसा और शांति के भारतीय संस्कृति के दूत के रूप में वहाँ प्रस्तुत हुए. उनके प्रभाव व प्रतिबोध ने अकबर की हीन व हिंसक मानसिकता को चमत्कारिक ढंग से परिवर्तित किया. आचार्य के अनुरोध पर बादशाह ने जैन परंपरा के पर्युषण पर्व व वैदिक परंपरा के विभिन्न पर्व-त्योहारों के निमित्त प्रतिवर्ष कुल ६ माह पर्यन्त जीवहत्या पर रोक लगाई. स्वयं अकबर ने पर्युषण पर्व के दिनों में शिकार न करने की प्रतिज्ञा की. खम्भात की खाड़ी में मछलियों के शिकार पर भी प्रतिबंध लगाया गया. जैन व वैदिक परंपरा के सभी तीर्थों को कर मुक्त किया गया. प्रतिदिन ५०० चिड़ियों की जिह्वा का मांसभक्षण करने वाले इस शासक ने हीरविजयसूरि के परिचय के बाद फिर कभी ऐसा न करने का संकल्प लिया. उस काल में हिन्दू बने रहने के लिए दिया जाता 'जजिया' नामक कर आचार्यश्री के कहने से अकबर ने बंद कर दिया. यह गौरवपूर्ण तथ्य है कि आचार्यश्री के साथ वार्तालाप के पश्चात अकबर सर्वत्र गोरक्षा का प्रचार करने के लिए सहमत हो गया. इस प्रकार मुगल काल में पहली बार हिन्दू प्रजा को अपने आत्मसम्मान की अनुभूति हुई. आचार्य हीरविजयसूरि के मुगल बादशाह पर बढ़ते प्रभाव से कट्टरपंथी मुल्लाओं में हड़कंप मच गया था. जून ई.स. १५८४ में अकबर ने हीरविजयसूरि को 'जगद्गुरु' की उपाधि देकर उनका राज-सम्मान किया. ई.स. १५८२ से १५८६ तक आचार्यश्री ने फतेहपुर सीकरी व आगरा के आसपास ही विचरण कर शहेनशाह अकबर को बार-बार प्रतिबोधित करने का महत्वपूर्ण कार्य किया. जैन परंपरा के ऐतिहासिक ग्रन्थ तो इन प्रसंगों का उल्लेख करते ही हैं, अकबर की सभा के उद्भट विद्वान अबुल फ़जल ने भी इन बातों का विस्तार से वर्णन किया है. उसके अनुसार अकबर को हीरविजयसूरि ने सर्वाधिक प्रभावित किया. विन्सेण्ट स्मिथ ने अपनी कृति अकबर में इन सारी बातों का प्रतिपादन किया है. आईने अकबरी नामक मुगलकालीन ऐतिहासिक ग्रन्थ भी उपरोक्त सारे तथ्यों की पुष्टि करता है. अकबर के इन अहिंसक कार्यों का उल्लेख अल बदाऊनी ने भी किए है. १५८५ ईस्वी में पुर्तगाली पादरी पिन्हेरो ने भी इनमें से अधिकांश बातों का समर्थन किया है. लोकश्रुति के अनुसार हीरविजयसूरि के जीवन-प्रसंगों के साथ बादशाह अकबर को प्रभावित कर देने वाली कई चमत्कारिक घटनाएं संबद्ध हैं पर उनका कोई प्रामाणिक आधार उपलब्ध नहीं है. ऐतिहासिक तौर पर यह उल्लेखनीय है कि एक वर्ष ईद के समय हीरविजयसूरि अकबर के पास ही थे. ईद से एक दिन पहले उन्होनें सम्राट् से कहा कि अब वे यहां नहीं ठहरेंगे, क्योंकि अगले दिन ईद के उपलक्ष्य में अनेक पशु मारे जायेंगे. उन्होंने कुरान की आयतों से सिद्ध कर दिखाया कि कुर्बानी का मांस और खून खुदा को नहीं पहुंचता, वह इस हिंसा से खुश नहीं होता, बल्कि परहेजगारी से खुश होता है. अन्य अनेक मुसलमान ग्रन्थों से भी उन्होंने बादशाह और उनके दरबारियों के समक्ष यह सिद्ध किया और बादशाह से घोषणा करा दी कि इस ईद पर किसी प्रकार का वध न किया जाय. प्राप्त उल्लेखों के अनुसार अपनी वृद्धावस्था में हीरविजयसूरि ने गुजरात लौटने से पहले धर्म-बोध देने के लिए प्रारंभ में अपने शिष्य उपाध्याय शांतिचन्द्रजी को तथा उनके पश्चात् उपाध्याय भानुचंद्रजी को अकबर के दरबार में छोड़ा था. अकबर ने अपने दो शाहजादों सलीम और दर्रेदानियाल की शिक्षा भानुचंद्रगणि के अधीन की थी. अब्बुल फ़जल को भी उपाध्याय भानुचन्द्रजी ने भारतीय दर्शन पढ़ाया था. इन तथ्यों के समर्थन में बहुत सामग्री उपलब्ध होती है. अकबर ने आगरा का अपना बहुमूल्य साहित्य-भण्डार हीरविजयसूरि को समर्पित कर दिया था. बाद में आगरा के जैन संघ ने उसे संभाला. मेवाड़ के गौरव ५ For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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