Book Title: Shrutsagar Ank 2000 01 010
Author(s): Manoj Jain, Balaji Ganorkar
Publisher: Shree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. इसी प्रकार एक उदाहरण रूप में कल्पसूत्र की प्रदीपिका टीका की आवयकता है. इसे उपलब्ध करना किसी के लिए बहुत बड़ी समस्या हो सकती है किन्तु यहाँ पर प्रदीपिका टीका की खोज करने पर स्वतः इस कृति का मूल व संलग्न प्रकाशन नाम या हस्तप्रत का नाम एवं अन्य सूचनायें पलक झपकते मिल सकती है. ३. सभी नामों के शक्य एकाधिक अपर नाम प्रविष्ट किये गये हैं जिसके परिणामस्वरूप जिस वाचक को जो भी नाम स्मरण हो वाञ्छित सूचनायें प्राप्त की जा सकती है. जैसे बारसासूत्र, कप्पसूत्त या कल्पसूत्र कोई भी कम्प्यूटर पर देने पर वाञ्छित सूचनायें प्राप्त की जा सकती है. ४. किसी भी प्रकाशक विशेष द्वारा प्रकशित एवं निश्चित विद्वान द्वारा संपादित कृति विशेष की शोध करनी हो तो संलग्न प्रकाशन एवं विस्तृत सूचनायें सरलता से प्राप्त की जा सकती है ५. किसी प्रकाशक द्वारा प्रकाशित सभी प्रकाशनों की सूचना प्राप्त की जा सकती है. जैसे किसी को देवचंद्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फण्ड से प्रकाशित पुस्तकों की सूची चाहिए तो सभी संलग्न सूचनाओं के साथ स्क्रीन पर उपलब्ध होने के साथ ही इसकी प्रिन्ट भी तुरन्त मिल सकती है. ६. इसी प्रकार किसी ग्रंथमाला से संलग्न सभी प्रकाशनों की जानकारी उपलब्ध हो सकती है. उदाहरण के लिए किसी को यदि आत्मानन्द जैन ग्रंथ माला का प्रकाशन चाहिए और कोई एक प्रकाशन नाम उसे स्मरण नहीं है तब ग्रंथमाला से संलग्न प्रकाशनों की सूची देखकर तुरन्त वाञ्छित प्रकाशन की शोध की जा सकती है. ७. किसी एक कृति का पूरा परिवार अर्थात् मूल कृति पर पुत्र-पौत्र-प्रपौत्रादि के स्तर पर रहे हुए टीका, विवरण, अनुवाद, सारांश, अध्ययन आदि के विषय में विस्तृत सूचना तथा इन सभी कृतियों से संलग्न प्रकाशनों तथा अन्य सूचनाओं की जानकारी प्राप्त की जा सकती है. उदाहरण के लिए आवश्यकसूत्र का हिस्सा प्रथम अध्ययन, इसकी नियुक्ति, नियुक्ति का भाष्य, भाष्य का हिस्सा गणधरवाद, गणधरवाद का (सं.) विवेचन, विवेचन का (हिन्दी) अनुवाद. एक दूसरे उदाहरण में कल्पसूत्र (मूल), इसकी सुबोधिका टीका, सुबोधिका टीका की वृत्ति, वृति का (गु.) अनुवाद, (गु.) अनुवाद का (हिन्दी) अनुवाद या मूल तथा टीका का (अं.) विवेचन. इन दोनो उदाहरणों में मूल कृति के सम्पूर्ण परिवार की विस्तृत सूचनायें यथा- एकाधिक अपर नाम, एकाधिक आदिवाक्य, परिमाण, भाषा, अध्याय, एकाधिक कर्ता, रचना वर्ष, रचना स्थल तथा इन सभी कृतियों के प्रकाशन नाम, प्रकाशक, वर्ष, पृष्ठ, संपादकादि एवं पुस्तक संख्या आदि का विवरण प्राप्त हो जाता है. ८. कर्ता एवं संपादक से सम्बद्ध कृतियों एवं प्रकाशनों की जानकारी प्राप्त हो सकती है. जैसे सम्पादक के रूप में प. पू. मुनिराज श्री जम्बूविजयजी तथा प्रकाशक के रूप में महावीर जैन विद्यालय, मुम्बई का प्रकाशन या कृति खोजनी हो इतनी जानकारी सरलता से प्राप्त हो सकती है. इस उदाहरण में श्री जम्बूविजयजी के सारे प्रकाशन या श्री महावीर जैन विद्यालय की पूरी सूची देखने की आवश्कता नहीं रहेगी. ऐसी स्थिति में श्री जम्बूविजयजी की मात्र श्री महावीर जैन विद्यालय से प्रकाशित कृति या प्रकाशन मिलेंगे अन्य नहीं. इससे श्रम एवं समय की पर्याप्त बचत होगी. ९. लायब्रेरी प्रोग्राम में एक और क्रान्तिकारी सुविधा उपलब्ध की गई है जिसके अन्तर्गत प्रत्येक प्रकाशन की कृति से स्वतंत्र उसकी स्वयं की लाक्षणिकताओं के सूचक लगभग १०० शब्दों/संकेतों का संकलन किया गया है. प्रत्येक प्रकाशन को वाचक की उपयोगिता एवं आवयकता तथा प्रकाशन के स्वरूप, सामग्री, माध्यम, कलेवर आदि को दृष्टिगत रखते हुए लाक्षणिकतासूचक शब्दों के साथ संयोजित किया जा रहा है. लाक्षणिकता की सूची में अभिनन्दन ग्रंथ, स्मृति ग्रंथ, स्मारिका, पद संग्रह, सुभाषित संग्रह, शोध ग्रंथ. For Private and Personal Use Only

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