Book Title: Shrutsagar Ank 1999 01 008
Author(s): Manoj Jain, Balaji Ganorkar
Publisher: Shree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुत सागर, माघ २०५५ हमारे जैन तीर्थ - २ श्री घण्टाकर्ण महावीर का तीर्थ क्षेत्र महुडी संकलन: पं. रामप्रकाश झा श्री महडी (मधुपुरी) तीर्थ जैन एवं जैनेतरों दोनों के लिए श्रद्धा-भक्ति का केन्द्र है. यहाँ प्रत्येक दर्शनार्थी की मनोवांछित कामना पूरी करने वाले श्री घण्टाकर्ण महावीर देव की चमत्कारिक प्रतिमा प्रतिष्ठत है. इस प्रतिमाका श्रद्धा-भक्ति से दर्शन करने वाले व्यक्ति की मनोकामना कभी निष्फल नहीं होती. अहमदाबाद से लगभग ८० कि. मी. दूर बीजापुर के पास अवस्थित यह तीर्थक्षेत्र लगभग २००० वर्ष पुराना है. वर्तमान देरासर की प्रतिष्ठा वि.१९७४ तथा घण्टाकर्ण महावीर स्वामी की प्रतिमा की प्रतिष्ठा वि.१९८० में हुई है. जैन शासन में ५२ वीर हैं, जिनमें तीसवें वीर का नाम श्री घण्टाकर्ण महावीर ज्ञात होता है. श्री सकलचंद्रजी म.सा. की प्रतिष्ठाकल्पविधि में अंजनशलाका विधि में सम्यक्त्वी श्री घण्टाकर्ण महावीर की स्थापना का विशेष विधान है. इस विशिष्ट क्रिया के पश्चात् ही अंजन की विधियाँ प्रारम्भ होती है. ऐसा कहा जाता है कि जम्बूद्वीप के आर्यक्षेत्र में तुंगभद्र नामक एक क्षत्रिय राजा था, जिसने लुटेरे तथा जंगली जानवरों से अपनी धार्मिक प्रजा की रक्षा करने में अपना सम्पूर्ण जीवन व्यतीत कर दिया. तीर कमान तथा ढाल गदा उसके प्रमुख शस्त्र थे. वे अतिथि सत्कार किया करते थे. मृत्यु के पश्चात् वे देव हुए तथा बावन वीरों में तीसवे वीर के रूप में घण्टाकर्ण महावीर नाम से उनकी प्रसिद्धि हुई. पूर्व जन्म में क्षत्रिय राजा होने के कारण उनके हाथ में धनुष बाण सुशोभित है. पूर्व जन्म में उन्हें सुखडी बहुत प्रिय थी. अतः श्रद्धालु उनको सुखडी का भोग लगाते हैं. सुविशुद्ध चारित्र संपन्न मुनिराज श्री रविसागरजी म.सा. ने अपने होनहार शिष्य श्री बहेचरदास (पू. बुद्धिसागरजी) को गुरूपरंपरा से चली आ रही आम्नायं सहित सम्यग्दृष्टि श्री घंटाकर्ण महावीर देव की आराधना हेतु मंत्र दीक्षा दी. जिसका उल्लेख स्वयं श्रीमद्जी ने अपनी डायरी में किया है. योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद्बुद्धिसागरसूरीश्वरजी गृहस्थावस्था से ही घण्टाकर्ण वीर के उपासक थे. वे वि.१९७५ में श्रीपद्मप्रभस्वामी की प्रतिष्ठा कराने के लिए महुडी आए हुए थे. वहाँ उन्होंने अट्ठम तप की उग्र उपासना कर घण्टाकर्ण महावीर का प्रत्यक्ष दर्शन किया और उनसे वचन ले लिया कि जैन-जैनेतर कोई भी भक्त उनकी भक्ति करके जो कुछ याचना करे, वे उसे प्रदान करेंगे. तत्क्षण उन्होंने दीवाल पर कोयले से घण्टाकर्ण महावीर का चित्र बना डाला. उसके बाद पोरबन्दर से शिल्पी बुलवाकर मात्र बारह दिनों में ही उस चित्र के आधार पर सुन्दर मूर्ति निर्माण करवाया तथा वि.सं. १९८० मागसर सुद तृतीया के दिन वर्तमान गर्भगृह में सर्वसिद्धिकारक घण्टाकर्ण महावीरदेव की प्रतिष्ठा करायीं. पीछे के भाग में घण्टाकर्ण देव का मूल यन्त्र अंकित किया गया. उसके साथ ही मन्त्र अंकित घण्टा स्थापित कर ध्वजदण्ड लहराया गया. वि.सं. २०२४ में प.पू. गच्छाधिपति गुरुदेव आचार्य श्रीमत् कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. के सदुपदेश से नवीन सत्तावीस जिनालय की प्रतिष्ठा हुई तथा सभी सुविधाओं से सम्पन्न सुन्दर धर्मशाला, भोजनशाला आदि निर्मित किये गये. तब से दिन-प्रतिदिन निरन्तर इस तीर्थ का विकास हो रहा है. यह एकमात्र ऐसा धर्मस्थान है जहाँ सुखडी का नैवेद्य चढ़ाकर मन्दिर से बाहर नहीं ले जाया जाता बल्कि मन्दिर के प्रांगण में ही उसे वितरित कर देने की परम्परा है. इस मूर्ति की दैनिक पूजा नहीं होती, बल्कि वर्ष में एकबार आश्विन सुद चौदस को दुपहर में १२.३९ पर हवन होता है तथा केशर से उनकी पूजा होती है. इस अवसर पर हजारों श्रद्धालु यहाँ एकत्र होते हैं. प्रति वर्ष देश-विदेश से लाखों श्रद्धाल इस तीर्थ का दर्शन कर पण्यप्राप्ति करते हैं. समीप ही कोट्यार्क मन्दिर में प्राचीन कलापूर्ण प्रतिमाओं तथा अन्य शेष पृष्ठ ८ पर For Private and Personal Use Only

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