Book Title: Shrutsagar Ank 1999 01 008
Author(s): Manoj Jain, Balaji Ganorkar
Publisher: Shree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुत सागर, माघ 2055 एक भव्य शासनप्रभावक ज्ञान पिपासु आत्मा राजपुताना की गौरवमयी भूमि पर जन्मे वीरपुत्र आत्माराधक श्रुतभक्त उपाध्याय श्री धरणेन्द्रसागरजी म.सा. आचार्य श्री पद्मसागरसूरि जोधपुर निवासी श्री हुकमराजजीसा मोहनोत के सुसंस्कारी घर में उनकी धर्मपत्नी श्रीमती ज्ञानकुंवर की कुक्षि से एक बालक का जन्म हुआ जो शंकरराज के नाम से जाना गया. धर्म संस्कारों से ओत-प्रोत इस परिवार में बालक का लालन-पालन उच्च जैन परम्पराओं के अनुरूप धर्म की छत्र-छाया में हुआ. शंकरराज बहुत ही दयालु एवं अन्तर्मुखी बालक थ.. सहज में ही इसका परिचय मेरे साथ हुआ. तब मैं मुनि अवस्था में था. मेरे सम्पर्क में आने के बाद शंकरराज को आत्मोन्नति में सहायक साध्वाचार में निष्ठा उत्पन्न हुई. शकरराज बड़े आग्रह से जिनेन्द्र परमात्मा कथित चारित्र धर्म के लिए हम लोगों को राजी कराने में सफल हो गए और मात्र 22 वर्ष की युवावस्था में संसार को तृणवत् क्षणभंगुर समझ कर सन् 1961 में श्रीफलवृद्धि पार्श्वनाथ जैन तीर्थ (मेड़ता रोड) में दीक्षा प्राप्त किये. दीक्षा के बाद शंकरराज का नाम श्री मुनि धरणेन्द्रसागर रखा गया. अब उन्होंने अपने ज्ञान-ध्यान में वृद्धि करने के साथ ही तत्वज्ञान का गहन चिन्तन प्रारम्भ किया. निरन्तर शान्तभाव से सभी प्रवृत्तियों से हट कर उन्होंने स्वाध्याय, अध्ययन-अध्यापन, लेखन, चिन्तन-मनन में अपना समय दिया. संस्कृ प्राकृत, हिन्दी, गजराती मारवाड़ी एवं अंग्रेजी भाषाओं में उन्होंने प्रवीणता प्राप्त की थी. सन् 1986 में मुनि धरणेन्द्रसागरजी की उत्तम साधुता एवं सुयोग्य चारित्र पर्याय को देखते हुए संघ ने उन्हें बड़े उल्लास के साथ आम्बावाडी, अहमदाबाद में पंन्यास पद तथा सन् 1993 में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा में विशाल जनमेदिनी के समक्ष उपाध्याय पद से विभूषित किया था. उपाध्यायजी में साधु के सर्वोत्कृष्ट गुण विद्यमान थें. गुरुजनों के प्रति उनका समर्पण भाव अनुकरणीय है. उनका जीवन एक खुली किताब जैसा था. रसनेन्द्रिय पर उनका अनुमोदनीय नियन्त्रण था. 37 वर्ष के चारित्र्य पर्याय में उन्होंने 15 मन्दिरों की प्रतिष्ठा कराई. कई मन्दिरों का जीर्णोद्धार कराया. कुछेक मूर्तियों को भराने में उनका योगदान रहा तथा 10 छरी पालित संघों को निश्रा दी. विगत 15 वर्षों में उन्होंने अनेक उद्यापनों एवं उत्सवों को सम्पन्न कराया. मुम्बई, जयपुर, दिल्ली, कलकत्ता, अजीमगंज, अहमदाबाद जैसे शहरों में चातुर्मास कियें तथा संघ को मार्गदर्शन देकर प्रभु महावीर के आचार एवं विचारों का प्रचार कर जिनशासन की महती सेवा की है. [शेष पृष्ठ 4 पर Book Post/Printed Matter सेवा में प्रेषक: संपादक, श्रुत सागर आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा, गांधीनगर 382 009 (INDIA) प्रकाशक : सचिव, श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा, गांधीनगर - 382 009 For Private and Personal Use Only

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