Book Title: Shrutsagar 2017 03 Volume 10
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 12 ॥२॥ ॥३॥ ॥४॥ March -2017 ॥शिक्षाशत बोधिका सार॥ अहँ नमः ॥ ॥६॥ श्रीपार्श्वनाथाय नमः ॥ श्रीगुरुभ्यो नमो नमः ॥ ऐं नमः ॥ सकल शास्त्र जे वर्णव्यो, वर्णन मात्र अगम्य; अनुभवगम्य ते नित्य नमुं, परमरूप परब्रह्म ॥१॥ सोपाधिक दृष्टि ग्रह्यो, दिसे जेह अनेक; निरूपाधिक पद चिंतता, जे अनेक थइ एक भवर्णादिक संगथी, जिम जल नाना भाति; पण स्वाभाविक गुण थकी, जलता छे एक जाति नाना कर्म उपाधिवश, तिम आत्मा चिद्रूप एक रूप पण आपथी, धरे विविध गुण रूप वादळमां पण झलहले, जिम आदित्य-उजास; तिम आत्मा कर्माभ्रमां, न तजे ज्ञानप्रकास ॥५॥ ध्यानानलि अनादि मल, दही सहज सौभाग्य; कनक परि जसु झलहल्यो, ते वं, वीतराग राम कहो शंकर कहो, कहो अनेकविध नाम; वीतराग अकलंक शिव, एक सर्व गत धाम ॥७॥ राम कृष्ण महादेव शिव, पुरुषोत्तम परब्रह्म; बुद्ध जिनादिक नामथी, एक ज तेह अगम्य ॥८॥ कोटि कल्प' लगे तप तपे, सीखे शास्त्र अनेक; पण अनुभव विण परम ते, लिख्यो न जाये अलेख उक्तं च - अनुभव अमृत कुंड के, रहेत किनारे जोहि; पंडित सब पढ पढ मरे, बुंद न पावे तोहि देव निरंजन अति अलख, घट मे रह्यो समाय; इत-उत हि भटकीत फीरै, मूरख जाने नाही ॥ २॥ ॥६॥ ॥९॥ ॥१॥ 1 चार युग जेटलो समय. (सत्युग- १७२८००० वर्ष, त्रेतायुग- १२९६००० वर्ष, द्वापरयुग- ८६४००० वर्ष व कलियुग- ४३२००० वर्ष= ४३२०००० वर्ष= १ कल्प. संदर्भ- शब्दरत्नमहोदधि, भाग-३, पृष्ठसंख्या- १७५२) For Private and Personal Use Only

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