Book Title: Shrutsagar 2017 03 Volume 10
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 30
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैन न्यायनो विकास (गतांक से आगे...) मुनि श्री धुरंधरविजयजी १३. श्री वीराचार्यजी तेओ विक्रमनी १२मी शताब्दिना उत्तरार्धमां थयां. पाटणनां सार्वभौम राजा सिद्धराजने तेमनां प्रत्ये बहु मान हतुं. एक वखत राजाए मश्करीमां तेमने का के 'अमारा जेवा राजानां आश्रयथी आपश्री दीपो छे!' आनां प्रत्युत्तरमा आचार्यश्रीए जणाव्यु के 'पूर्वपुण्यथी प्रतिभा प्रसरे छे. राजाए वळी कधुः ‘आ सभा सिवाय अन्य देशमा फरशो त्यारे बीजा बावानी जेम अनाथता समजाशे. सूरिजीए कही दीधुं के अमुक समये पोते अहींथी विहार करशे. सिद्धराजे नगरद्वारो बंध कराव्यां. विद्याबळथी आचार्यश्री बहार निकळीने पल्लीपुर पहोंच्या, त्यांथी महाबोध नगरमां जई बौद्धोने वादमा हराव्यां. गोपालगिरि (गवालियर) मां राजाए घणु सन्मान आप्यु ने त्यां पण अन्य वादीओने जीत्यां, राजाए चामर छत्र वगेरे राजचिह्नो आप्यां. नागोर जई जैनदर्शननी शोभा वधारी. सिद्धराजना आमंत्रणथी पुनः पाटण तरफ विहार कर्यो. चारुप आव्या त्यारे तेमने मळवा सिद्धराज त्यां आव्यो हतो. पाटणमां एक सांख्यवादी वादिसिंह आव्यो हतो. सिद्धराजे ते वादीने हराववा गोविंदाचार्य के जेओ कर्ण महाराजना बालमित्र हतां अने वीराचार्यजीना कलागुरु हतां तेमने करी. तेओए का के तेने तो वीराचार्यजी हरावशे. पछीथी वीराचार्यजीए गोविंदाचार्यजी साथे जई तेनुं सर्व मान गाळी नाख्यु हतु. ते वादमां वीराचार्यजी पोतानो पक्ष मत्तमपूर छन्द अने अपहृति अलंकारमां बोल्यां हतां. सर्वानुवादनी शरत प्रमाणे सांख्यवादी ते प्रमाणे बोली शक्यो न हतो. ए प्रमाणे वीराचार्यजी विजयमाळ वर्या हता. वळी सिद्धराजनी सभामां कमलकीर्ति नामना दिगम्बरवादीने हरावी स्त्रीमुक्तिनी सिद्धि करी हती अने विजय मेळव्यो हतो. १४. श्री मुनिचंद्रसूरिजी तेमनो स्वर्गवास वि. संवत् ११७८ मां थयेल छे, एटले तेओ विक्रमनी बारमी शताब्दिमां थयां. तेओ अखंड ब्रह्मचारी अने उग्र तपस्वी हता. तेओ कांजी पीने ज रहेतां तेथी ‘सौवीरपायी' तरीके प्रसिद्ध थया हतां. श्री हरिभद्रसूरिजीकृत 'अनेकान्तजयपताका' पर टिप्पण अने 'ललितविस्तरा' पर पंजिका, वगेरे तेमनी न्यायरचना छे. बीजा पण कुलको, वृत्तिओ, प्रकरणो वगेरे लगभग २० थी २५ ग्रन्थो For Private and Personal Use Only

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