Book Title: Shrutsagar 2017 03 Volume 10
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

View full book text
Previous | Next

Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 15 March-2017 ॥३४॥ ॥३५॥ ॥३६॥ ॥३७॥ SHRUTSAGAR कूप-झंपथी वारता, खीजे जिम क्रोधंध; तिम मतिवाडा लोक ते, सीख देता करे धंध उक्तं च - जेसो लीपण छार को, जेसों ऊखर' खेत; ज्यों अंधे कुं आरसी, त्यों मूरख को हेत जिम पय पाता पण वधे, विषधरने विष रूप; तिम हित पणे कहता धगुं, क्रोध करे जन क्रूर खल जन सथे न बोलसो, खीख सुणो रे संत; विषधरनी परे विष भर्या, ते कोपसे अत्यंत शास्त्र मात्र माने नही, केई हियाना अंध; साखी' उखाणा संग्रही, निंदे सकल प्रबंध काग सरोवर छोडीने, पेसे छीलर मांहि; तजी शास्त्र तिम मूढ ते, कुमति कुमतिमां ध्याये संबल सबलु शास्त्र छे, दीवो अने अंधार; उफरां छाजे शास्त्रथी, तेहनथी उद्धार शिक्षा स्धी दाखीने, तारे भवजल जेह; राखे पडता नरकथी, शास्त्र कहीजे तेह वर्या कुमति रोगे करी, तेहने मति विपरीत; भलु कहेता उठ्यो भसी, हडकवायानी रीत श्वान भसे पन्नग डसे, अग्नि प्रजाले अंग; तिम सहजसुंनीचने, परनिंदासुंरंग अमेद्य बहु परि ढांकीये, तो पण करे कुवास; तिम नमता पण नीच जण, मखथी कहे कुभास जलो चालणी का पुरुष, मांखी एक स्वभाव; सार सार ते परिहरे, धरे असारसुं भाव ॥३८॥ ॥३९॥ ॥४०॥ ॥४१॥ ॥४२॥ ॥४३॥ ॥४४॥ 1 क्षारवाळी जमीनमां खेती. 2 देशी दोहा. For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36