Book Title: Shrutsagar 2017 03 Volume 10
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir March-2017 ॥४५॥ ॥४६॥ ॥४७॥ ॥४८॥ ॥४९॥ ॥५०॥ ॥५१॥ SHRUTSAGAR 16 हंस सुपडो सापुरुष, ए त्रिहुं एक प्रकार; सार सार ते संग्रहे, अलगो तजे असार हांसु ठग निंदा करे, कर्ता(रता) धर्म विचार; ते पोताना हाथसुं. मस्तके घाले छार तो पण सहेजे संतने, करवा पर उपगार; इम जाणीने सीखना, कहेवा बोल बि-च्यार शुद्ध शास्त्र प्रकासता, ओलपता' नही लगार; ध्वज बांधीने धर्मनो, कहेवो सर्वाचार विवाह ढोले वाजते, जीरी काली रात; शास्त्र सभामां वांचीइ, खूणे धूतारा घात दया दमन ने दान सम, देव-गुरुनी भक्ति; क्षमा सरलता धर्म ए, आदरवो निज शक्ति क्षमा अहिंसा सत्य तप, शम दम विनय ने ब्रहम; ज्ञानादिक गुण जिहां नही, तिहां किम कहीये धर्म तप तीरथ व्रत आदरो, दीयो दान कसो देह; एक ज जीवदया विना, धूआ धवलहल' (र) तेह जटा वधारो जंगल वसो, नग्न विभूति लगाओ; जीवदया जाणी नही, तो सब विधि जल जाओ जिम कोई विष भक्षण करे, अमर थवानी आस; तिम हे साथी ! मूढमति, वांछे धर्म विलास घात करे पर जंतनी, धरे धर्मनी चाह; अहो अज्ञानी लोकमां, गाडरीयो प्रवाह कंद भखो काया कसो, जटा भस्म धरो अंग; क्षमा दयानी राश' विण, किम लहेसो शिव-संग छार लगाया नही मुगति, नही मुगति वनवास; एक ज अंग छे मुक्तिनु, तत्त्वज्ञान अभ्यास 1 छुपावq. 2 धूमाडाना महेल जेवं. 3 संपत्ति. ॥५२॥ ॥५३॥ ॥५४॥ ॥५५॥ ॥५६॥ ॥५७॥ 4राख. For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36