Book Title: Shrutsagar 2017 03 Volume 10
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 19 March-2017 ॥८४॥ ॥८५॥ ॥८६॥ ॥८७॥ ||८८॥ ॥८९॥ SHRUTSAGAR भोला कां भूले करी, बाउलि घाले बाथ; खोटइं भव खोइ पछै, घणु घसे शो हाथ नरभव गयो न आवस्ये, छे वली थोडा दिन्न; गाफिल माहे मत गमो, मूढ विमासो मन्न जिम भांगी अरहट घडी,, फोगट फेरा खाय; तिम अविवेकी लोकनो, जनम अनारथ जाय तजी ममत्व धीर करी, निरखे अंतर-नेत्र; पल एकमां पेखस्यो(?), पंथ पाधरो' नेत्र जोइ तपासी जन ग्रहे, सावरणी पण सार; संबल जे संवर तणुं, ते परखो कां न लगार? मन आग्रह जेहने नही, शास्त्र-अभ्यास समर्थ; तत्त्व दृष्टि जसु निर्मली, ते साधे परमार्थ सकल शिक्षानो सार ए, सर्व शास्त्रनो चोज; शुद्ध देव गुरु धर्मनी, सुधी करजो खोज २ कुलवर्णाश्रम चाल जे, तेह न जाणो धर्म; ओलखवो आत्मार्थने, ए एह धर्मनो मर्म सिद्ध नरे जिम संग्रहयो, विष पिण अमृत थाय; तिम "सात्त्विक दृष्टे ग्रह्या, शास्त्र सकल शिवदाय पण ते तो दुर्लभ घणु, सम्यग् ज्ञान विवेक; इम मिथ्या अभिमानथी, अरथ सरइ नहीं एक श्रद्धा जिम ज्ञान(ना) बलें, सदगुरु-चरणपसाय; ते पिण दृढ अभ्यासथी, लहे थोडा दिनमांहि स्वातिबंदथी सुक्तिमां, जिम मुक्ता उपजंत; स्वल्प शिक्षाथी संतने, तिम अनंत गुण हुंत इम ए संक्षेपे कही, हित-शिक्षा लवलेस; स्वल्प बुद्धि जन सर्वनइ, ए अमृत उपदेस ॥९०॥ ॥९ ॥ ॥९२॥ ॥९३॥ ॥९४॥ ॥९५॥ ॥९६॥ 1 सरल. For Private and Personal Use Only

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