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अकोटा की कांस्य प्रतिमाएँ
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मराल त्रिवेदी
भारतवर्ष में धातु में से मूर्ति बनाने की कला प्राचीन काल से चली आ रही है। भारत के विविध प्रदेशों से लोहा, तांबा, सोना, चाँदी तथा कांस्य वगैरह में से बनाई हुई प्रतिमाएँ प्राप्त हुई हैं। हडप्पा के उत्खनन कार्य दरम्यान मोहेन-जोदारो से कुछ ऐसे संकेत प्राप्त हुए हैं जिन से पता चलता है की लगभग ई.सा पूर्व २००० पहले पश्चिम से धातु आयात की जाती थी तथा उस पर कार्य किया
जाता था ।
मध्ययुग में भारतवर्ष के विविध भागों में धातु निर्मित प्रतिमाएँ बनायी जाती थीं। इन स्थलों में विशेषरूप से बिहार के चौस, हरियाणा में हांसी, राजस्थान में वसंतगढ, गुजरात में वल्लभीपुर तथा अकोटा का समावेश होता है। यह सारे प्रदेशों से प्राप्त प्रतिमाओं की अपनी अलग विशेषताएँ तथा अपनी खास शैली रही है। इन प्रतिमाओं में विशेष शैली के साथ-साथ अन्य प्रदेशों की मूर्तिकला के साथ कुछ समानताएँ भी पाई जाती हैं। इस से यह पता चलता है की मूर्ति कलाकार अपने ज्ञान का आदान-प्रदान करते थे । इसी लिए हमें किसी एक प्रदेश की मूर्तिकला व अन्य प्रदेश की मूर्ति कला में साम्यता मिलती है । इस लेख में अकोटा तथा इस प्रदेश से प्राप्त कांस्य प्रतिमाओं के विषय में संक्षिप्त वर्णन किया गया है जो कि पश्चिम भारत का एक मुख्य मूर्तिकला केन्द्र माना जाता है ।
वर्तमान में, दक्षिण गुजरात में बडौदा के पश्चिम भाग में, विश्वामित्री नदी के किनारे पर अकोटा उपग्राम स्थित है। इसकी खोज एम. डी. देसाई द्वारा ई.सन् १९४९ में हुई, तथा इसके बाद बडौदा में स्थित महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग के प्रध्यापक डॉ. एस. राव द्वारा अकोटा में उत्खनन कार्य किया गया। इस प्रदेश में से पाँचवी से ले कर ग्यारहवीं शताब्दि तक की कांस्य प्रतिमाएँ प्राप्त की गई हैं।
यह अकोटा ग्राम प्राचीन युग तथा मध्ययुग समय में 'अंकोटक' नाम से जाना जाता था । जिसके प्रमाण प्राचीन दानपत्रों व सिक्कों आदि पर उत्कीर्ण
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