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SHRUTSAGAR
___February-2016 पिगलाई हुई धातु को मोम की जगह मिट्टी के ढोल में भरा जाता था। धातु ठंडी होने के बाद मिट्टी के ढोल को तोड दिया जाता था तथा धातु की तैयार हुई नयी प्रतिमा को आखरी ओप दिया जाता था।
अकोटा से प्राप्त ज्यादातर प्रतिमाएँ हलकी पायी गयी हैं। अकोटा की आदिनाथ भगवान की प्रतिमा तथा बदामी' से प्राप्त महावीर स्वामी की प्रतिमा को यक्ष तथा यक्षी अकंन युक्त प्राचीनतम् प्रतिमा माना जाता है। ___ अकोटा से खोजी गई पाँचवी शताब्दि की आदिनाथ प्रतिमा को, जिन प्रतिमा में धोती अकंन युक्त प्राचीनतम् प्रतिमा माना जाता है। आदिनाथ की यह प्रतिमा हाल बडौदा म्यूजियम में सुरक्षित है। इस शैली की धोती युक्त प्रतिमाएँ वसंतगढ में भी पाई गई है। ___ अकोटा शैली की कुछेक प्रतिमाओं का मस्तक बाकी पतले शरीर की तुलना में भारी पाया जाता था। यह साम्यता वाला (वल्भीपुर) से प्राप्त प्रतिमाओं में भी पाई गई है।
अकोटा से प्राप्त कुछ खास प्रतिमाएँ :
१. भगवान आदिनाथ : अकोटा से प्राप्त भगवान आदिनाथ की एक प्रतिमा अकोटा की प्राचीनतम प्रतिमाओं में से एक है। इस प्रतिमा का काल लगभग ई.सन् ४६० से ५०० है। प्रतिमा में भगवान के अर्ध-बन्द चक्षुओं को चाँदी से जडित दर्शाया गया है। प्रतिमा के हाथ, पैर तथा धड का भाग खंडित है। प्रतिमा के चौडे गोलाकार कंधे तथा पतली कमर गुप्त समय के मूर्तिकला की खासीयत दर्शाते हैं। प्रतिमा में धोती का अंकन दिखाया गया है। दोरी से बांधी हुई गांठ को खास तरीके से दर्शाया गया है। धोती के बीच का हिस्सा पारंपरीक गुजराती 'पाटली' जैसा दिखाया गया है।
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