Book Title: Shrutsagar 2016 02 Volume 02 09
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 32
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 30 श्रुतसागर फरवरी-२०१६ २. जीवंतस्वामी : अकोटा जीवंतस्वामी की एक सुंदर प्रतिमा प्राप्त हुई है जिसका समय ई.सन् ५०० है। इस प्रतिमा के मस्तक पर मुकुट का अंकन इसकी विशेषता है। प्रतिमा में सुंदर ऊँचा मुकुट तथा अलंकारों को दर्शाया गया है। इस प्रकार के ऊँचे मुकुट की शैली कुशान समय में मथुरा के इन्द्र के अंकन से विकसित हुई है। प्रतिमा के पीठिका का भाग नष्ट हो चुका है। आंखों में चाँदी द्वारा अंकन किया गया है। प्रतिमा में घुटने से नीचे तक धोती का भाग दर्शाया गया है। धोती के बीच में अलंकार युक्त दुपट्टे का अंकन है। इस तरह धोती के साथ एक पैर में अलग से दुपट्टा दर्शाना यह प्रारंभिक पश्चिम मूर्ति कला की विशेषता है। ३. अंबिका देवी : इस प्रदेश से अंबिका देवी की छट्ठी सदी के उत्तरार्ध की प्रतिमा प्राप्त हुई है। देवी ललित मुद्रा मे सिंह पर बिराजमान है। देवी के दायें हाथ में आम्र-लुंबी तथा बायें हाथ में फल का अंकन किया गया है। देवी की गोद में दाईं तरफ बालक का अंकन है। देवी के भामंडल तथा पीठिका में बारीक सुंदर अंकन किया गया है। भामंडल के ऊपर पद्मासनस्थ पार्श्वनाथ का अंकन किया गया है। इसके मुकुट पर मुखाकृति सा अंकन है तथा नीचे रत्न अंकित है। इस प्रतिमा में अलंकारित शैली पर से यह अंदाजा लगता है कि इस प्रतिमा का समय सातवीं सदी के प्रारंभकालीन हो सकता है। परंतु प्रतिमा के पीछे अंकित लेख पर से इस प्रतिमा का समय छट्ठी शताब्दि का उत्तरार्ध मालूम पडता है। इन प्रतिमाओं के उदाहरण द्वारा अकोटा की मूर्तिकला पर हल्का प्रकाश डालने का प्रयास किया है। अकोटा में से तीर्थंकरों तथा देवियों की विविध प्रतिमाएँ प्राप्त हुई हैं। इस स्थल से प्राप्त ज्यादातर प्रतिमाओं को वडोदरा स्थित 'बडौदा म्यूजियम में संरक्षित किया गया है। इस शैली की कुछ प्रतिमाएँ विदेशी संग्रहालयों में भी प्राप्त होती हैं जिन्हें होनोलुलु अकादमी ऑफ आर्टस' तथा 'मेट्रोपोलीटन म्यूजियम ऑफ आर्टस' में भी संरक्षित रखा गया है। For Private and Personal Use Only

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