Book Title: Shripalras aur Hindi Vivechan
Author(s): Nyayavijay
Publisher: Rajendra Jain Bhuvan Palitana

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Page 9
________________ ४ किसीको धोखा मत दो, धोखेबाजी महान् पाप है। RE---- -१२ श्रीपाल रास आज मानव को पैसे से जितना मोह है उतना मानव से नहीं । उसके दिल में प्रेम नहीं, पैसा है। क्योंकि उसने अपने सुख की खोज पैसे में की हैं । पैसे का सुख अपूर्ण है। पैसे से आप चश्मा खरीद सकते है किन्तु पैसा आपको आँख नहीं दे सकता है। पैसा आपको कलम दिला सकता किन्तु लेखन कला दिलाने में असमर्थ हैं। पैसे के द्वारा आप रोटी, रोटी ही क्यों रम गुल्ले जलेगी, घेवर, मोहन थाल भी खरीद सकते हैं, किन्तु पैसे से आप भूख नहीं खरीद सकते जो कि सूखी रोटी और चने को भी स्वादिष्ट बना देती है। भूख के अभाव में सुन्दर मिष्टान भी कड़वे हैं । पैसे से तलवार खरीद सकते हैं किन्तु पैसा आपको वीरन्य नहीं दे सकता है। पैसे से आप जगत् के भौतिक पदार्थ अपने आधीन कर सकते हैं किन्तु मानसिक शांति एवं अद्वितीय आध्यात्मिक आनन्द नहीं पा सकते हैं । पैसे का सुख, सुख नहीं सुखाभास है। पैसा साध्य नहीं जीवन का एक साधन है। सुख है ज्ञान सहित त्याग, तपश्चर्या, अनासक्त प्रवृत्ति एवं आत्म स्वभाव की रमणता में आप अपनी आत्मा से पूछियेगा कि (१) हे आत्मन् ! तेरे जीवन की अनमोल घड़ियां किस भाव बिक रही हैं ? (२) केवल रोटी कपड़े और जगत के भौतिक पदार्थों तक ही तेरा मनुष्य भव सीमित है ? (३) गिनती के चन्द सिक्कों में अपने जीवन की कीमती घड़ियों को बदल देना क्या बुद्धिमानी है ? आप शांत चिस से बैठकर विचार करियेगा । यदि आप अपने भूतपूर्व जीवन का अध्ययन करेंगे तो आपको एक नई रोशनी मिलेगी। हाय ! मैंने कितना ग...या...या ? अंतर की आँखें खोलो, अपनी अनन्त दर्शन, ज्ञान चारित्र युक्त शक्तिमान् विशुद्ध आत्मा का अनुभव करी । यह दृढ़ संकल्प करो कि मैं सिर्फ रोटी कपड़े का दास नहीं, भौतिक पदार्थाका भूखा नहीं, किन्तु 'मैं अजर, अमर, दृष्टा ज्ञाता सच्चिदानंद विशुद्ध आत्मा हूं।" संसार के सुख दुःख पूर्व संचित पाप पुण्य के विकार हैं पहले बांधे हुए कर्म हैं उन्हें तो जैसे तैसे भोगना ही पड़ेगा। तू इतना घबराता क्यों है ? इसमें हर्ष शोक की कोई बात नहीं। अपने शुभाशुभ कर्मों को शांति से भोग अवश्य एक दिन इन कर्मों का अंत होगा । तू आत्म-शक्ति का दीपक ले आगे बढ़ता चल, रात्रि के बाद सुनहले प्रभात का होना निश्चित है। प्रेम, समभाव, संतोष एवं सहृदयता आत्मा की संपत्ति हैं | मन को केन्द्रित करो।

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