Book Title: Shripalras aur Hindi Vivechan
Author(s): Nyayavijay
Publisher: Rajendra Jain Bhuvan Palitana

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Page 12
________________ हिन्दी अनुवाद सहित सफलताएं मेरे दाहिने बायें चलती है । একংএরजू ७ ग्रंथारंभ ढाल पहली, राग, ललना देश मनोहर मालवो, अति उन्नत अधिकार - ललना ! देश अवर मानुं चिहुँ दिशे, पखरिया परिवार-ललना || १ ||देश० तस सिर सुगर मनोहरु, निरुपम नयरी उजेण ललना । लखमी लीला जेहनी, पार कलीजे केण ललना || २ ||देश० सरग पुरी सरगे गई, आणी जस आशंक ललना । अलकापुरी अलगी रही, जलधि संपानी लेकलना || ३ || देश ० प्रजापाल प्रतपे तिहाँ, भूपति सवि सरदार ललना । राणी सौभाग्य सुन्दरी, रूप सुन्दरी भरतार ललना || ४ || देश० सहेजे सोग सुन्दरी मन, माने मिथ्यात ललना | रूप सुन्दरी चित्तमां रमे सुधी समकित बात ललना ! ||५|| देश ० भारत वर्ष के इतिहास में मालय देश का गौरवपूर्ण एक प्रमुख स्थान था, इस देश की प्राचीन नगरी अन्ति का नूतन नाम उज्जैन है। यह मालव भूमि के मध्य केन्द्र पर है। इसके चारों ओर नगर गांव खेडे ऐसे सुन्दर ढंग से बसे हैं कि ये नगर - गांव खेड़े नहीं किन्तु पुण्य भूमि उज्जैन का मानो एक विस्तृत परिवार ही है, ऐसा ज्ञात होता था । मालव देश में समृद्धिशाली वैभव सम्पन्न अनेक नगर थे किन्तु अवन्तिका उज्जैन को ही वेद पुराण एवं कथानक ग्रन्थों ने तीर्थ स्वरूप मुकट-मणि स्वीकृत कर उसकी मुक्तकंठ से प्रशंसा की है। उज्जैन का स्वास्थ्यप्रद जलवायु उपजाऊ भूमि, शीत, ग्रीष्म और वर्षाकाल में लहलहाने वाली नाना प्रकार की फसलों का सुन्दर दृश्य वन उपवन उद्यान वाटिकाओं के विकसित रंग बिरंगे पुष्पों की सुगन्ध से मिश्रित वायु, सिप्रा नदी की विमल जल राशि से निनादित वन प्रदेश सूर्य की किरणों से चमकते मन्दिरों के स्वर्ण कलश, भक्तजनों को आह्वान करती मन्दिरों पर लहराती ध्वजाएं, सिप्रा तट पर सौध शिखरी भगवान श्री पार्श्वनाथ का चैत्य, प्राकृति सौन्दर्य और श्रीमन्तों के भवनों पर उड़ती हुई राष्ट्रीय पताकाओं में इतना सामर्थ्य हैं कि वे दर्शकों के मन को सहज ही अपनी ओर आकर्षित कर लेती हैं ।

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