Book Title: Shripalras aur Hindi Vivechan Author(s): Nyayavijay Publisher: Rajendra Jain Bhuvan Palitana View full book textPage 6
________________ ॐ नमः ॐ ह्रीं श्रीं सिद्धचक्राय नमः श्री अभिधान राजेन्द्र को rafता भीम विराट श्रीपाल - रास ( हिन्दी अनुवाद सहित ) अनुवादक - श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज के शिव मुनि श्री न्यायविजयजी प्रथम खण्ड मंगलाचरण (ग्रंथकार की ओर से ) कल्प वेली कवियण सणी, सरसती करो सुपसाय | सिद्धचक गुण गावतां, पूर मनोरथ मांय ॥ १ ॥ अलिय विघन सवि उपशमें, जपतां जिन चोवीश। नमतां निज-गुरु पयकमल, जगमां वधे जगीश ॥ २ ॥ हे शारदे ! तु कवियों की कामनाओं को सफल बनाने में कल्पलता के समान है ! मैं भी आपकी कृपा से सिद्ध महिमा दर्शक श्रीपाल रास लिखता हूं, मेरी इस भावना को तू सफल कर । श्री ऋषभ, अजित, संभवादि सौधीस तीर्थकरों के नाम स्मरण और सद् गुरू के वंदन से जन्म जरा मरण आदि समस्त भव- रोग दूर हो जाते हैं ! मैं अपने परम कृपालु गुरु उपाध्याय कीर्त्तिविजयजी को वंदन कर ग्रंथारंभ करता हूं। मुझे अवश्य ही साहित्य सेवा एवं यश की प्राप्ति होगी !Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 397