Book Title: Shripalras aur Hindi Vivechan
Author(s): Nyayavijay
Publisher: Rajendra Jain Bhuvan Palitana

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Page 4
________________ २०४ हिनो विवेचन CA R EKKR (३) विषय पृष्ठ सख्या । विषय पृष्ट सख्या दुसरा खड-टाल ८वीं १४९ / पाप का प्रत्यक्ष फल १९७ मदनमजूषा का विवाह, श्रीफल १५१ सेठजी चल बसे स्थापना, चवरी, हथलेबी बेटा किसका १५२ गुणसुन्दरी की प्रतिज्ञा चनकर रहोगी मेरे हृदय की स्वामिनी १५३ तीसरा खडे-पांचवीं ढाल २०२ पाऊं तुम्हारा प्यार मैं १५६ आष जाना चाहते हैं ? मदनमजूषा की विदाई १६० क्या यही कुपडलपुर है ? तिसरा खंड-कहां क्या ? जनता चकित हो गई । २०९ नाच न आवे तो आंगन टेढा मंगलाचरण (विनयविजय जी महाराज) १६२ गंगलाचरण (मुनि श्री न्यायविजयजी | तीसरा खड-छठ्ठी दाल २१३ त्रैलोक्यसुन्दरी का परिचय २१५ महापान ) १६६ एक अनुभूत योग दृढ़ संकल्प १६४ चक्कर काट रहे थे आपना जीवन न बिगाड़े १६५ मैदान में कूट पड़ा २१८ तीसग खंड-दाल पहली १६६ तीसरा खड-सा वी दाल मृत्यु को निमन्त्रण न दें १६८ श्रृंगारसुन्दरी और उसकी सखियां २२० धन्य है सम्राट कुमारपाल और चार पैर सोलह आंखें १७० वस्तुपाल, तेजपाल २२७ पल में उस पार उनकी आंख लग गई १७२ जयसुन्दरी का विवाह तीसरा खंड-ढोल दूसरी १७४ | तीसरा खंड-आठवीं ढाल घर बैठे गंगा थाणानगर का निमन्त्रण सूर्य ढलने पर भी छाया स्थिर रहेगी १७६ महामन्त्र का प्रत्यक्ष फल १७८ जंगल में मंगल तीसरा खंड-तीसरी दाल १७६ उज्जयिनी में कमलप्रभा का द्वार २३९ शहद लपेटी छुरी १८१ चौथा खंड-कहा. क्या ? जहाज में खलबली मच गई मंगलाचरण (मुनि न्यायविजयजी) २४० लंपटता एक अभिशाप है १८५ चांदी बरसाना तो चांये हाथ का खेल है २४२ अरे ! पोल खुल गई १८६ चौथा खंड-पहली दाल २४३ आंखो में अन्धेरा १८८ अमृत आनन्द, अमृत क्रिया २४४ तीसरा खंड-चौथी दाल मां के प्यार के आगे, स्वर्ग भी तुच्छ है २४५ झूठ की दौड़ कहां तक ? १९५ | अब भी संशय शेष है ? पदा छुरा १८३ २४८

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