Book Title: Shrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana Author(s): Harishankar Pandey Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 7
________________ आशीर्वचन - भारतीय संस्कृति में स्तुति का महत्त्वपूर्ण स्थान है। वैदिक, बौद्ध और जैन --तीनों परम्पराओं में इसका मुक्त उपयोग हुआ है। जैन आगम उत्तराध्ययन में स्तुति को मंगल माना गया है। यहां शिष्य ने गुरु से प्रश्न पूछा-थवथुइमंगलेणं भंते : जीवे कि जणयइ ? भन्ते ! स्तव और स्तुति रूप मंगल से जीव क्या प्राप्त करता है ? गुरु ने शिष्य की जिज्ञासा को समाहित करते हुए कहा-इससे ज्ञान, दर्शन और चारित्र की बोधि का लाभ होता है। प्राचीन आचार्यों ने स्तव और स्तुति में एक भेदरेखा खींचते हुए बताया है--स्तव बड़ा होता है और स्तुति छोटी। पर सामान्यतः उक्त दोनों शब्द एक ही अर्थ में प्रयुक्त होते रहे हैं। __श्रीमद्भागवतपुराण में अनेक देवों की स्तुतियां उपलब्ध हैं। डा० हरिशंकर पाण्डेय ने उनका समीक्षात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है। उनके इस शोध निबन्ध पर मगध विश्वविद्यालय ने उनको डाक्टरेट की उपाधि दी है। श्री पाण्डेय एक श्रमशील और लगनशील व्यक्ति हैं। विद्या रसिक हैं । बल्कि यों कहना चाहिए कि विद्याव्यसनी हैं। पढ़ना और लिखना--दोनों ही उनकी रुचि के विषय हैं। श्री पाण्डेय का श्रम अपने आप में सार्थक हैं । पाठक प्रस्तुत ग्रन्थ का स्वाध्याय कर लेखक के श्रम को प्रोत्साहन दे सकते हैं, उसे अधिक सार्थक बना सकते हैं। गणाधिपति तुलसी २५ अक्टूबर, १९९४ अध्यात्म साधना केन्द्र, नई दिल्ली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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