Book Title: Shraman Sukt
Author(s): Shreechand Rampuriya
Publisher: Jain Vishva Bharati Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 6
________________ मुहूर्त मे उत्तरा फाल्गुनी योग मे प्रबल पुरुषार्थी भगवान ने घनघाती कर्मो का क्षय कर डाला और उन्हे केवल ज्ञान और केवल - दर्शन प्राप्त हुए। वे सर्वज्ञ और सर्वदर्शी हुए। वर्द्धमान तीर्थकर महावीर अथवा श्रमण भगवान के नाम से प्रख्यात हुए । यह बताया जा चुका है कि वर्द्धमान ने १२ वर्ष के साधना - काल मे धर्मोपदेश नहीं दिया। उनका उपदेशक जीवन केवल ज्ञान और केवल - दर्शन की प्राप्ति के बाद आरभ होता है। वे इसके बाद ३० वर्ष तक पैदल जनपद विहार करते हुऐ जन-जन को मगलमय ऋजु धर्म का उपदेश देते रहे। उनका उपदेश था * * * * * * एक बात से विरति करो और एक बात मे प्रवृत्ति । असयम से निवृत्ति करो और सयम आदि मे प्रवृत्ति । पाप करने वाले की दुर्गति होती है और आर्य-धर्म का पालन करने वाला सद्गति को प्राप्त होता है । अच्छे कृत्यों का फल अच्छा होता है और दुष्चीर्ण कृत्यो का फल बुरा ! आत्मा की सतत् रक्षा करो, इसे दुष्कृत्यो से बचाओ । जो आत्मा सुरक्षित नहीं होती, वह बार-बार जन्म-मरण करती है और जो सुरक्षित होती है, वह सब दुखो से मुक्त हो जाती है। 1 भाषाओ का ज्ञान, विद्याओ का आधिपत्य, रक्षक नहीं होते । सत्य की गवेषणा करो, उसकी शरण ग्रहण करो। वही त्राण है । कोई जीव मरण नहीं चाहता, सब जीना चाहते हैं, सबको जीवन प्रिय है । अत किसी प्राण का घात मत करो । सर्वप्राणियो के प्रति मैत्री का आचरण करो । उन्होने कहा सम्यक्ज्ञान, सम्यक् दर्शन, सम्यक् चारित्र और सम्यक्त - जीवन मे इन चारो के एक साथ सयोग से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 490