Book Title: Shilopadesh Mala
Author(s): Harishankar Kalidas Shastri
Publisher: Jain Vidyashala
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शीखोपदेशमाला. _ विशेषार्थ-श्रा ग्रंथना करनार श्री जयसिंहसूरिना शिष्य जयकीर्ति मुनि, ग्रंथना श्रारंजमां मंगलाचरण कहे जे के- जन्मयीज चतुर्थव्रतरूप ब्रह्मचर्यने पालनारा, वाणी समान मनोहर वरूपवाली राजीमतीने, राज्यने अने त्रणसे वर्षसुधी पोताने खाधीन रहेली राज्यलक्ष्मीने तृणनी पेठे त्याग करी गिरनार पर्वते सहसावनमां दीक्षा लेनारा, तेमज बीजा साधारण मनुष्यथी नहि पाली शकाय एवा शीलवतने पालवाथी अथवा लोकमां उत्तम रूपपणाथी ध्यान करवायोग्य अथवा बाह्य श्रने धान्यंतर शत्रुने जीतवाथी त्रण जगत्मा प्रधान एवा बावीशमा तीर्थंकर श्री नेमिनाथ प्रजुने नमस्कार करीने 'विवेकरूप हस्तीने रदेवानी शालासमान एवी शीलव्रतना उपदेशरूप पुष्पोनी मालाने ' अथवा शीलोपदेशमाला नामना ग्रंथने हुं कहीश.
हवे फलने बतावता सता शीलनो उपदेश कहे जे.
निर्मश्रितसकलहीलं दुःखवलीमूलोत्खननकीसं ॥ निम्मदियसयलहीलं, उदवल्लीमूलनकणकीलं ॥
कृतशिवसुखसमीलं पालयत नित्यं विमलशील कयसिर्वसुदसंमीलं, पालद निचं विमलसीलं॥२॥
शब्दार्थ-हे जव्यजीवो ! तमे ( निम्म हियसयलहीलं के०) मथन करी नांखी ने सर्व प्रकारनी निंदा जेणे एवा, तथा (उदवसीमूलकणणकील के) पुःखरूपी वेलना मूलने उखेडी नांखवाने खीला समान एवा श्रने ( कयसिवसुहसंमीलं के०) कस्यो डे मोदना सुखनो मेलाप जेणे एवा ( विमलसील के० ) निर्मल शीलने ( निच्चं के०) निरंतर (पालह के) पालो. ॥२॥.
विशेषार्थ-दे जव्यजनो! दहीने मंथन करनारा रवैयानी पेठे सर्व प्रकारनी निंदाने मंथन करनार, सिंह, गजेंड, सर्प श्रने संग्रामादिकना परानवने दूर करनार, कर्मरूप जलथी उत्पन्न थएली पुःखरूपी वेलिना * श्रादरवायोग्य अने गंडवायोग्य वस्तुनुं ज्ञान.

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