Book Title: Shilopadesh Mala
Author(s): Harishankar Kalidas Shastri
Publisher: Jain Vidyashala
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मंगलाचरण. पण पोताना दोष तथा उर्दशा दूर करीने श्रेष्ठ पुरुषोमा अग्रपद मेलवे बे, ते सङ्गुरु जयवंता वर्तो. ॥६॥
(उपजाति वृत्तम् ) चक्रे पुरा यजयसिंहसूरि-शिष्येण शास्त्रं जयकीर्तिनाना ॥ तस्यादमासूत्रयितास्मि वृत्ति, सुखावबोधां स्वपरोपकृत्यै ॥ ७॥
अर्थ-पूर्वे जयसिंहसूरिना शिष्य जयकीर्ति नामना मुनिए जे श्रा शीलोपदेशमालारूप शास्त्र रच्यु , तेनी हुँ ( अजयदेवसूरि) पोताना अने परना उपकारने माटे सुखे बोध थाय एवी वृत्ति(टीका)करुं बु.॥७॥ __ए प्रकारे मंगलाचरण करीने ग्रंथकार ग्रंथनो श्रारंज करे जे.
हिं तत्वना उपदेशरूप अमृतना समूहने एकतुं करनार ग्रंथकार (जिनकीर्तिसूरि) पुण्यरूपी वेलना पसवने प्रफुल्लित करवाने मेघनाश्रारंजरूप था शीलोपदेशमाला नामना प्रकरणना आरंजनेविषे, उत्तम विचारमा प्रविण एवा पुरुषोना चित्तने चमत्कार करवामाटे, ग्रंथ जोनाराऊनी तेमां प्रवृत्ति करवामाटे अने विघ्नना समूहनो नाश करवामाटे पोताना इष्टदेवताने स्मरण करवापूर्वक शीलना उपदेशना प्रयोजनना संबंधवाली प्रथम गाथा कहे .
(आर्यावृत्तम्) श्राबालब्रह्मचारिणं नेमिकुमारं . नत्वा जगत्सारम् आबालबंनयारि नेमिकुमारं नैमित्तु जयसारं ॥
शीलोपदेशमालां वक्ष्यामि विवेककरिशालाम् सीलोबएसमालं बामि विवेयकरिसालं ॥१॥ शब्दार्थ-(आबालबंजयारि के०) जन्मथी मांडीने ब्रह्मचारी एवा अने (जयसारं के)त्रण जगत्ने विषे प्रधान एवा, बावीशमा तीर्थकर ( नेमिकुमारं के०) श्री नेमिकुमारने ( नमित्तु के०) नमस्कार करीने ( विवेयकरिसालं के०) विवेकरूपी हस्तीने रदेवानी शालारूप एवा (सीलोवएसमालं के०) शीलोपदेशमाला नामना ग्रंथने हुँ (वुछामि के०) कहीश. ॥१॥............. ....

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