Book Title: Shastravartta Samucchaya Part 9 10 11
Author(s): Haribhadrasuri, Badrinath Shukla
Publisher: Divya Darshan Trust

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ [ शास्त्रवार्त्ता सम्पादकीय अमदाबाद में पहले स्तबकका मुद्रण शुरू होने के बाद पूज्य गुरुदेवश्री का चातुर्मास जामनगर हुआ । वहाँ दिवाली वेकेशन में पंडितजी एक मास के लिये गये थे और उतने अवधि में वहाँ दूसरे और तीसरे स्तबका हिन्दी विवेचन अपने समक्ष मुनियों को बैठा कर लिखवाया था । जामनगर के बाद वि. सं. २०३२ का चातुर्मास पूज्यश्री ने अमलनेर (खानदेश) में किया । मैं भी उस वक्त पूज्यश्री के साथ था | पंडितजी वहाँ आये और करिवन आठ मास तक यह कार्य चलता रहा । यद्यपि पहला स्तत्रक दिव्यदर्शन ट्रस्ट की ओर से प्रकाशित होने वाला था, किन्तु पंडितजी की इच्छा एवं सूचना से वह पहला खंड चौखम्बा औरिखन्दालिया 'वाराणसी (U.P.) की ओर से प्रकाशित करवाया गया । अमलनेर में पंडितजी को रहने के लिये शीतल बिल्डिंगवाले मलुकचंदजी के पुत्रों ने अपने बिल्डिंग में एक पूरा फ्लेट ही खाली कर दिया | एवं नेमिचन्द्र मिश्रीमल बन्धुयुगल की ओर से पंडितजी के लिये संपूर्ण भोजन - पानी इत्यादि का प्रबन्ध हो गया । १०] मैं और दूसरे भी अनेक जिल्हा पनि आदि पात ९ मे १२ और पड़ने ३ से ६ घंटे तक पतिजी के पास अध्ययन के लिये बैठते थे । साथ साथ शास्त्रवार्त्ता के चौथे स्तबक का विवेचन चालू कर दिया | पहले तीन स्तबकों के विवेचन से इस में कुछ विशिष्टता यह थी कि पहले तीन स्तबक में परस्पर विचार- परामर्श नहीं हुआ था जब कि इस में पहले प्रातः तीन घंटे स्याद्वादकल्पलता की पंक्ति पृष्ठों पर काफी प्रश्नोत्तर रूप में परामर्श होता था उस के दुपहर तीन घंटे विवेचन लिखने का कार्य होता था और लिखते समय भी नया परामर्श होता था । इस प्रकार पंडितजी के और हमारे समवाय प्रयत्नों से स्तबक ४-५-६-७ और ८ का हिन्दी विवेचन अमलनेर में हो सका । बाद में अमलनेर से हमारा विहार हुआ और पंडितजी वाराणसी लौट गये । वहाँ जाने के बाद वे संपूर्णानन्द संस्कृत युनिवर्सिटी के बाइस चान्सलर पद पर नियुक्त हो जाने से ९-१०-११ स्तबकों के विवेचन में काफी विलम्ब होने पर भी आखिर उन्होंने पूरा लिख कर भेज दिया । मुद्रणालय में देने के पहले १ से २१ स्तबकों की संपूर्ण प्रेसकोपी के सुवाच्य सम्पादन - संस्कृत अन्य का प्राचीन प्रत के आधार से संशोधन, उस में योग्य रीति से परिच्छेदों का वर्गीकरण तथा पूर्वपक्ष-उत्तरपक्ष की पंक्तियों का अभ्रान्त विभाजन एवं उद्धृत पाठों के मूल स्थानों का यथासंभव अन्वेषण कर के उनका उल्लेख करना तथा उन मूलग्रन्थों के उद्धरणों की व्याख्या के साथ यहाँ हिन्दीविषेचन की तुलना कर लेना, कुछ वैपरीत्व हो तो सुधार लेना और अकारादि क्रम का परिशिष्ट बनाना इत्यादि सम्पादन कार्य की जिम्मेदारी मेरे सीर पर रही। तथा हिन्दी विवेचन की प्रेसकोपी का भी अच्छी तरह सम्पादन, बीच बीच में विषय के अनुरूप शिपक लगाना, परिच्छेदों का समुचित विभाजन करना, पूर्वपक्ष-उत्तरपक्ष की पंक्तियों को अलग कर दिखाना, विवेचन में कोई त्रुटि हो उस को सुधारना - संशोधन करना, आवश्यकता के अनुसार टीपण लिखना तथा मुद्रण के काल में सभी मुकों को जाँचना और हर स्तबकों के विस्तृत विषयानुक्रम शुद्धिपत्रक तैयार करना ... इत्यादि कार्यों की जिम्मेदारी भी मेरे सीर पर

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 497