Book Title: Shastravartta Samucchaya Part 9 10 11
Author(s): Haribhadrasuri, Badrinath Shukla
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 18
________________ विषय १६२ इन्द्रियसंस्कार जनक थ्यञ्जक से पृथक पृथक संस्कार अयुक्त-उत्तर घायुसंयोग से श्रोत्र संस्कार की अनुपपत्ति शब्द द्रव्य नहीं-गुण है -नैयायिक पूर्वपक्ष शब्द से बहिरिन्द्रयसिद्धि और शब्द आकाश का गुण । हेतु के उभय अंश की सार्थकता १४९ साध्याऽप्रसिद्धि की शंका का निरसन १५० शब्द को व्रव्य मानने में बाधक और संकट एकद्रव्याधितत्य हेतु वायु में व्यभिचारी होने की शका का निरसन १५१ उदभूतरूपजन्यता द्रव्यचाचष में ही सीमित करने में गौरव वायु में स्पार्शन प्रत्यक्षयिषयता की शंका का उत्तर वायु के स्पार्शन प्रत्यक्ष के प्रतिक्षेप में स्वतन्यमत १५३ स्वाश्रयसमवायसम्बन्ध से त्वचाभाव की प्रतिबन्धकता-एकदेशी १५४ एकदेशी के मत की असमीचीनता १५५ महत्व उद्भूतस्पर्श के प्रवेश में गौरव का निरसन शम्दगुणत्यवादी नैयायिकमत फा प्रतिकार-उत्तरपक्ष शब्द में द्रव्यवसायक अनुमान १५८ शब्दान्तरारम्भवाद से श्रवणप्राप्ति-नैयायिक बाणादि द्रष्य में क्षणिकत्वापत्ति-मन १५९ शब्द परिणामी व्रव्य होने से शाकथनसंगति [शास्त्रया" विषयानुक्रमणिका विषय ककारादि के लौकिक प्रत्यक्ष की नव्यदृष्टि से उपपत्ति नव्यदृष्टि से किये गये कथन की आलोचना गुणवान् होने से शब्द में द्रव्यत्य सिद्धि १६३ अल्पतादि के अनुभव से शब्द में गुणसिद्धि तीन-मन्दता से अल्प-महत्व प्रतीति मानने में दोष वायु प्रतिनिवर्तन से सिद्ध प्रयोग से शब्द में द्रव्यत्वसिद्धि भनेक पुरुप द्वारा पक शब्द के ग्रहण की उपपत्ति एकत्यादि संख्या के योग से शब्द में द्रव्यवसिद्धि घट और शब्द में समान रूप से एकत्यादि की प्रतीति नैयायिकप्रोक्त अनुमानमें एकद्रव्यत्वहेतु की असिद्धि विलक्षण क्षयोपशम ही मूर्तप्रत्यक्ष का जनक है मूर्म प्रत्यक्ष के प्रति उद्भूतरूप की कारणता का अस्वीकार विजातीय एकत्व को प्रत्यक्ष का कारण मानने में गौरव पाप-पुण्य और लोकबहुम्वाल्पत्व का अनिश्चय बहुलोक को प्रमाण मानने में संख्याव्याघातादि दोष कर्तृभस्मरण हेतुझ अपौरुषेयत्व का अनुमान दूषित विगान के सम्भवित पक्षवय में हेतु की अनुपपत्ति

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