Book Title: Shastravartta Samucchaya Part 7
Author(s): Haribhadrasuri, Badrinath Shukla
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 12
________________ पृष्ठ विषम | gastr विषय १३३ विशिष्ट शुद्ध के अभेव व्यवच्छेव को अश ११० प्राधिकभंग के प्राक्ष का प्रतिकार १११ भाष्यकार के विविध कथन का अभिप्राय ११२ भाष्यकार के द्विधि कथन का धन्य अभिप्राय ११३ शोकादि वासमामूलक होने का कथन ११५ बासना अहेतुक होने पर बोषपरम्परा एमला उस एपक्ष ९३४ अतिरिक्तपर्याप्त मानने में अनवस्था १३४ विशेषरूप से सामान्याभाव कर प्रतिक्षेप पूर्वपक्ष ११९ नैयामिक के संशय के लक्षण को परीक्षा १२० संगयलक्षणान्त विरोध का स्वरूप क्या है ? १२१ दूसरे प्रकार के विरोध की समीक्षा १२१ संशय में प्रकार विधया विरोधमान में वोष का उद्धार १२२ इत्यं .... प्रत्थसंदर्भ का अन्य रोसि से ११० अनेकता में सर्वत्र संाधापति का उद्धार १६४ अनुमान में अनुमानत्वत्वेन मानत्वं इस ११८ विशेषावधारण के तीन प्रकार प्रयोग की आपत्ति उत्तरपक्ष १३५ मनपाच्छेदकतामेव व्यवच्छेद १३६ मानसामान्यभेद में तदन्यश्य के निवेश का प्रतिक्षप औचित्य १३६ स्यात् प्रत्यक्षं मानमेव' इसी प्रयोग का औचित्य १३२ श्यामान्यरूपवान् को ध्यवच्छेद्य मानने में आपति १४० चित्रपट में अयं नीस एष' यह प्रयोग क्यों नहीं होला ? १४१ 'स्व का सत्य और पराऽसत्व दोनों एक नहीं है १४२ श्रणु और महत् स्वतंत्र परिमाण होने की आशंका व्याख्यान १९३ एवकारप्रयोग की अनुपपत्ति के घोष से निस्तार १२४ व्यापम से 'प्रत्यक्षं मानमेव' प्रयोग के उपपादन की आशंका १२५ विशेष्यसंगत एवकार का अर्थ १२५ विशेषणसंगत एवकार का अर्थ १२५ क्रिमसंगत एवकार का अर्थ १२७ मध्यम अस्यन्त योगभ्यवच्छेव एवकार अर्थ मह १३ १२७ मध्यमत में क्रियासंगत एवकार का अर्थ १२६ एवकार का एकमात्र अन्योन्यभ्यस्व हो अर्थ १२८ अन्य योग का प्रतिभास भिन्न भिन्न रूप से १२९ सर्वत्र बज्रता हो एवकार से व्यच्छे १२९मात्र में शक्ति माने तो लाघव १३० विविध प्रयोगों में एवकार के व्यवच्छे का निवेश १३ एवकार का अर्थ प्रत्यन्ताभाष अन्योन्याभाव अन्यमत १३२ एवकार का अर्थ श्रन्थ और परुदेव मसान्तर १३३ प्रत्यक्ष में मामत्वरयोग और मानव का साध्यदेव अशक्य- उत्तरपक्ष १४२ सूक्ष्म अग्निकणसंसृष्ट इन्धन के अधकार में प्रत्यक्ष का प्रतिक्षेप १४३ अणु महत्] स्वतःत्रपरिमाणवादी को अनु भव बाथ १४४ अणुपरिमाण का प्रपलाप भी अशक्य १४४ नंयायिक की ओर से परिमाण साधक अनुमान १४५ कि के अनुमान में हेतु में स्वरूपासिद्धि बोष | १४७ अणुद्रश्य को न मानने वाले मीमांसक का प्रतिप १४८ सत्य और असत्व में स्व-परापेक्षश्व काल्पनिक है- संथापिक १४१ समास में स्व-परापेक्षस्व की पारमानाभिकता - जैन

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