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पृष्ठांक विषय
| पृष्ठाको विषय १४९ प्रतिरिक्त सत्ता का स्वीकार मसर्क से नामित | १६३ (8) अभिमप्ताधास्त्राविरुप से भंगत्रय १५० द्रव्य और जाति में सरप्रतीति समानाकार ।
का प्रतिपावन
गविरुप भंगत्रयका प्रतिपादन १५० सई पर संकेतविषमतावदकरूप से सत्ता । १६५ (११) प्रयपर्यायाविप में भंग त्रय का की सिद्धि कर
प्रतिपादन १५१ उत्पादादि के घोग से सत्ता मानने में प्रश्न- | १६६ (१२| सत्यादिरूप में भगत्रय का प्रतिपावन
T " !2) संवतरूपादि में भात्र का प्रतिपादन १५१ मनेकान्तपक्ष में उक्त प्रश्नों को अबकाया | १६५ (१४) रूपानि से भंग त्रय का प्रतिपावन
१६. (१२ म हिरप से भंगप्रय का प्रतिपादन १५२ सापेक्षसएषाऽसस्व का सूचक सप्तभंगानय १६९ (१६) याह्याशिरूप से भंगत्रय का प्रतिपादन १५. सस्तभंगी में एपकार और पात् पर की १० स्यादरित अवक्तव्य-पंचममंग
सार्थकता १७१ स्यामास्ति सतम्य छटा भंग १५४ स्यात् मस्ति' प्रथमभंग का अभिप्राप १७१ स्यादस्ति नास्ति-अवतव्य-सप्तमभंग १५४ "स्मात् मास्ति' वितीयभंग का तात्पर्यविवरण । १७२ माटवे विकल्प को बायांका का निरसम १५५ (१) स्वाद प्रवक्तस्य' तृतीयभंग का गमितार्थ १७२ भंगविभाजक उपाधि सात से अधिक नहीं १५५ अम्ययीभावसमास को युगपत्प्रतिपावन में | १७४ सप्तभंगी में सकलादेश- विकलाश
पाकि १७५ कालावि आठ का परिचय १५५ इन्द्वावि समास की युगपरप्रतिपादन में प्रसाक्ति | १७८ सफलादेश के विषय में अन्य मत १५६ 'पुष्पबन्त' शम्म से एकसाय मूर्य-चन्द्र के १७८ सप्फभंगों प्रमाण से अनेकाम्त गभित निश्चय
योपको आमांका का समाधान । १७८ पितृत्वावि धर्म केयल प्रासोतिक मण्डनमिश्र १५७ उमालमत अवाच्यताबाधक नहीं है। १७६ मण्डनमिश्र के कपन का निराकरण १५७ एकाम्स पयार्य-लक्ष्या का घुगपद शाम्च- । १५० केवल धर्ममेव मानने पर पिता-पुत्रादि प्रतीबोध प्रवाश्य
तियों को अनुपति १५८ पटादि अर्य का प्रतिषेध असंबद्ध नहीं है १८० चित्रकार ज्ञानवाद में चित्राकार अर्य की १५८ माल्यमत के निषेधार्थ पटबिरूप से प्रसस्य |
आपत्ति का निरूपण १८० अनुमानावि से भी एकाम्लसिजि अषय । १५९ (२) निक्षेपापेक्षा सप्तभंगीगत भंगप्रय का | १९१ अनेकान्तबाबासा की अनुमापरता का
उपपादन
समानरप से प्रभावहाहै १६. (३) संस्थानावि से भंगत्रयापेक्षाभेद निम्पण । १८२ निम्पयसा एकान्तवाद में मानने पर भी १६० (४) प्रवाधाव से भंगत्रय का उपपाइन ।
निस्तार १६१ (५) क्षणभेष से भय का उपवन १५२ व्यक्तिनिष्ठाघ-कारणभा से अनुमिति१६. भिन्न भिन्न इन्द्रिय की अपेक्षा से भंग त्रय
स्वनियामक शून्यता मिरूपण १८३ एकान्तवादो की मान्यता से अनेकान्त को १६२ (७) घटाविधायमान्यता रूप से भंगप्रय ।
समर्थम १६२ (4) उपादेपारिरूप से भंगत्रय का प्रसिपायन | १५४ एकारतबाव में हायस्वरूप का निधन सामय