Book Title: Shastravartta Samucchaya Part 7
Author(s): Haribhadrasuri, Badrinath Shukla
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 11
________________ पृष्ठांक मूलक कामवारण विषय | पृष्ठांक विषय ५० परिमाणग्रह के संबंध में गोलापप्तीकार के | ६५ उत्पादाविरुध्य समयत का उपसंहार अभिप्राय का मिरसन । ९६ निमितमेव से उत्पावावित्रय का एकत्र . अग्य प्रष्य के वर्शन से मेसिदिर है । E१ प्रासाबाद में एकत्वाप्रतीति को अनुपपत्ति । ९७ बोरगत में भी प्रेरुप्य का स्वीकार ८१ अषपत्री का प्रांशिक पर्सन अनुपपन्न १८ जस्परवम्यय के बिना अणिकता दुषंट ८२ अवयवों का पूर्णतया पर्सम अनुपपन्न १८ बस्तु को अणिकता निरपेक्ष नहीं होती ८२ संयुक्त अवयवसमूह ही अवयवी है ९९ "ये यद्भावः' इत्यावि नियम से हाय को ३ अवभिन्न अवयवों में परोक्षता की आपत्ति उपपत्ति का निराकरण १०. उत्पसिकाल में नष्ट:' प्रयोगापति क्षताम८३ अवयवभिन्न अवयवी में परोक्षताको पापति निरक्षका १०० मामावनिक्षेपचतुष्टय से सुम्यवस्था ८४ प्रणयव-अवयवी मेवपक्ष में इषगमाला १०१ नामादिनिक्षेपको सर्ववस्तुध्यापकप्ता के अपर ८४ पृथक् नत्पाव-विनामा प्रतीति से भेत्र शंका प्राप.समाधान का निवारण १०२ केवलिप्रसारूप नामनिक्षेपकाला मत अरमणीय ५५ अवतसरप पारमाथिक होने का मत मिथ्या १०२ शुद्ध जीवस्य श्योप-यह स्थूल मत है ८६ पास से भिन्न होगा पा अभिन्न | १.३ यजीव को कल्पना प्रयुक्त ८६ साहयका प्रधानाईतबाव असंगत १०३ प्रध्याषिक-पर्यायाधिक के अभिमत निक्षेप ७ मारतबावी भर्तृहरि का मत निरूपण । १.४ संग्रहमय में, नामनिक्षेप में स्थापना का EE विविध पाणी में बजरी वाणी का स्वरूप सर्भाव-पूर्वपक्ष ८८ मध्यमा वाणी का स्वरूप १०४ नामनिक्षेप को प्याख्या में स्थापना का ८९ पश्यम्ती पाणी का रूप ___ किसी तरह हिमव नहीं है ६. मोर भर्ष में तादात्म्यसंबन्ध का समर्थन | .... | प..५ नाम का स्थापना में अन्तर्भाव अनुचित ९० शवमात्र से प्रपंवमेव की उपसि उत्तरपक्ष १० काम्यावेतमात्रवानिराकरण | १०५ पिता आदि का विषा हुआ नाम ही नाम९१ शम्बईतबाव का विस्तार से निराकरण निःक्षेप है ५ विषक्षा के प्रभाव से तथा प्रयोगामाष को | १०६ भाव के साथ नाम और स्थापना का संबंध आदका का निवारण | मिम मित्र २१ श्रवणाभाष अथषा सर्वनिसरता को आपत्ति । १०६ प्रदेशपंचव निक्षेपश्य के स्वीकार से ९२ शमीलाधिपरिणाम के ऊपर विकल्पप | सग्रहको विशषता अयुक्त सगाविशश्च से मुखलेषनापति .७ अजुम्नत्रनय में द्रव्य का अस्वीकार. ९३ प्रपत्र की अविद्यामूलकता का पणन सरनसश्मित ९४ प्रपंच शाह की अवस्था विशेषरूप नहीं है महा १.८ सि सेनसूरिमत अरमणीय समाश्रममता१४ प्रपंच के मूल विद्या का ब्रह्म से पक्ष में | विकल्प सुयापि वर्ग ९५ जनमत में खरो मध्यमा-पश्यन्ती वाकका | १.९ भावनिक्षेप के स्वीकार में वरुपाधिकरण के ताश्विक स्वरूप । के भंग का आक्षेप

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