Book Title: Shastravartta Samucchaya Part 7
Author(s): Haribhadrasuri, Badrinath Shukla
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 10
________________ पृष्ठाक अनुचित पृष्ठांक विषम विषय ११ सत्यको जातिए न मानने पर बाधक | ६७ स्थायिता उत्पार विनाश की अविनाभाधि है ५१ घटत्व अडोपाधिस्प न मानने वाले पम- ६८ उपादादि के स्ध-अविनामाबका समर्थन वाभमत का निरसन ६८ मनुस्यूताकार का प्रघमास मिच्या महाँ है ५२ अखंडोपाधिस्व को प्रसमवेतरख माने तो भी । ६८ एतरवाष्पवसायमूलक संशयोत्पत्ति का कथन क्या? अनुचित ५२ सम्बन्धोवा में बलक्षय का अनुभव मिया है | स्मूलाकार प्रतिभास का अपलाप प्रशस्य ५३ सामाग्यविशेषोभयात्मक बस्तुस्वरूप को ६९ अषयी का प्रतिभास मिथ्या नहीं है प्रतीति ६९ परमाणुमों के संचय काही अपरनाम प्रवषी ५३ प्रथम दर्शन में ही व्यापकरूप से प्याप्ति ७. कारण कार्य के प्रत्यक्षसिद्ध मेगाभेपनिषेध नाम का वर्ष ५४ एककाल में उत्पावधि परस्परविरुद्ध होने ७१ एक ही वस्तु अंशभेद से प्रत्यक्ष-परोक्ष हो की का सकती है ५५. सोलाविका निमित्त है पासमा ७१ मिरचय संततिविच्छेव प्रसंभव है ५५ पादारी को प्रमाण भी भप्रमाण होने से ७२ उत्पाब-रुयय के विना स्थिरता का संभव अनिश्चय क्शा नहीं १७ स्याहार में मापाविस दूषणों का निवारण ७३ सहप के समायंबाटकी समालोचना ke एजना प्रग्यास्तिक पल का निराकरण ७३ सरकार्य पक्ष में भाषण की अनुपपत्ति ५८ एकान्त पास्तिक मत का निराकरण ७४ अमेवपक्ष में परिणाम-परिणामिभाव को ६. रमावली पृष्टारत की अनुपपति शंका अमृपति का परिहार ५४ कार्यकारणभेवपाधी वोषिरमत को समा६. प्रमाण जौर मय में लाक्षणिक मेव लोपता ६१ 'स्यात् घटोसिस' इस वाक्य में प्रामाण्य ! ७५ अन्योतकर के मत का निराकरण कल्पना अनुचित महाँ है ७५ अपयो के विषय में करस्वामी भाप्त की ११ धुप में बाशिक ममत्व को आपत्ति समालोचना ५५ तुर्मय में नयत्वापत्ति निराकरण ७६ संयोगस्वरुप रंग में अध्याप्मस्तित्व की शंका १३ मय के सापेशिक प्रामाण्य का मूलाधार का निवारण ५४ माथिक-पर्यावापिक नयों में भजनामूलक ७ प्रतिबन्धकतारूप अमिमायकता भवयवाणभेव किन नहीं होती ६४ म्याधिक पर्यापाथिक नय का स्वतन्त्र ७७ प्रतिबध्यतावस्थेवक कोटि में रक्तायनविषम नहीं है विषयकके निवेश में रोष १५ मम्पमय के विषय में असत्यपन का अवधा- ७७ 'मूले पुक्षः कपिसंयोगों' इस प्रतोलि का रण प्रयुक्त है स्वाभाविक मर्य १६ अनमुसूतरूप का माविक यही उत्पाव है। ७६ रक्तारत की अन्यथा उपपत्ति पोषपरत १५ मायाप में परिवर्तित हो जाना यही | ७९ घर में अपृपाप-पृयत्वावि की प्रीति मेवबिनाश है । पक्ष में दुर्घट

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