Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 20
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

View full book text
Previous | Next

Page 257
________________ तदिदं भावचौर्यं मे, ममेदृक् च विडम्बना / एवं च भद्रे ! जानामि, वृत्तान्तं स्वपराश्रयम् / // 744 // श्रुत्वा चेदं सुललिता, विस्मिता भाविता हृदि / .... पौण्डरीकोऽपि भावार्थ, जग्राहैतद्गतं मनाक् // 745 / / अवादीच्चार्य ! किञ्चित् तद्, वृत्तावस्ति तवाधुना / ततोऽनुसुन्दरेणोक्तं, यावत् संवेगमागतः // 746 // प्रक्रान्तोऽहं चरित्रं भो, वक्तुं स्वं भवतां पुरः / / तावच्चारित्रधर्मोऽसौ, चलितो मम सम्मुखम् // 747 // तेन चागच्छता चारूकृतं सात्त्विकमानसम् / .. नगरं शुभ्रतां नीतो, विवेकगिरिपर्वतः // 748 // . शिखरं चाप्रमत्तत्वं, कृतमुच्चस्तरां शुचि / भूयोऽपि भूषितं जैनपुरमुत्तोरणावलि , // 749 // स च चित्तसमाधानमण्डपः परिमण्डितः / सा च निःस्पृहता वेदिर्भूयः सज्जा विनिर्मिता कृतं तच्चोल्लसत्कान्ति जीववीर्यं वरासनम् / . सर्वशक्त्या निजं सैन्यं, निखिलं परितोषितम् // 751 // महामोहबलं लग्नं, तस्य चागच्छतः पथि / सर्वप्राणेन तद् युद्ध, द्वयोर्दृष्टं स्फुटं मया // 752 // ततः सम्यक्त्वसद्बोधयुक्तेन स नृपो मया / जातः प्रदत्तावष्टम्भो, जयलक्ष्मीनिकेतनम् // 753 // चिरन्तनं हतारातिर्गृहीत्वाऽन्तःपुरं ततः / चारित्रधर्मराजेन्द्रो, मदभ्यर्णमुपागतः // 754 // द्विषस्ते हृतसर्वस्वाः किञ्चिच्छेषस्वजीविताः / . . लीनास्तिष्ठन्त्यदश्चित्तवृत्तावस्ति माधुना . // 755 // . 248 // 750 //

Loading...

Page Navigation
1 ... 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298