Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 20
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 270
________________ // 900 // // 901 // // 902 // // 903 // // 904 // // 905 // "ध्रुवाणि यः परित्यज्य, अध्रुवाणि निषेवते / ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति, अध्रुवं नष्टमेव च" मुह्यत्येव जनः सर्वो, यद्वा स्वीयप्रयोजने / तत् को दोषो ममेत्येषा, प्रहास्यत्यवभावनाम् आन्तरं तदिदं प्रोक्तमानुसुन्दरचेष्टितम् / श्रुत्वेदं मुदिताः सर्वे, पुण्डरीकादिसाधवः जहौ सुललिता शोकं, संविग्ना च व्यचिन्तयत् / पूर्वाबोधमपेक्ष्याहं, यथाऽस्मि गुरुकर्मिका तदिदं जीवरत्नं मे, विना तीव्रतपोऽग्निना / न शुद्ध्यतीति संचिन्त्य, सा गुरूंणामनुज्ञया कर्तुं तपांसि कष्टानि, प्रवृत्ता विपुलोद्यमा / तद्गात्रं रत्नकनकावलीश्रीपात्रतां ययौ लघुभिश्च महद्भिश्च, सिंहनिष्क्रीडितैस्तया / त्रासिताः कर्मणां भेदाः, कलभा यूथपास्तथा तस्या भद्रामहाभद्रे, सर्वतोभद्रिका तथा / भद्रोत्तरा च प्रतिमा, भद्राद्वैतं वितेनिरे आचाम्लवर्धमानेन, भावसायुज्यमीयुषा / प्रवर्धमानस्तद्भावः, प्लावयामास पातकम् / चान्द्रायणं चरन्त्या च, चन्द्रिकासमया तयां / द्योतितं स्वकुलव्योम, ध्वस्तं च ध्वान्तमान्तरम् संसेव्य यवमध्यानि, वज्रमध्यानि चादरात् / निःस्पृहा मोक्षमार्गस्य, मध्यमध्यासितेव सा एवमादितपोभिः सा, क्षालयन्ती स्वकल्मषम् / वाहिनीव स्थिता शुद्धध्यानपूरप्रवाहिनी // 906 // // 907 // // 908 // // 909 // // 9.10 // // 911 // . ... 261

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