Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 20
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ // 756 // // 757 // // 758 // // 759 // // 760 // // 761 // अन्यच्च त्रिजगद्वन्द्यं, प्रपद्य जिनभाषितम् / लिङ्गं सम्प्रति बन्धूनां, वर्ग: पोष्यो मयाऽऽन्तरः एवं च वदता तेनानुसुन्दरमहीभुजा / संहृतं तास्करं रूपं, चक्रिरूपं स्फुटीकृतम् कृतसंकेतभावेन, गता चौरविडम्बना / आगता मन्त्रिसामन्ताः, प्रोक्तस्तेभ्यो निजाशयः प्राप्तकालतया तेषां, प्रतिभातः स मानसे / ततः पुरन्दरायादाद्, राज्यं चक्री स्वसूनवे अर्हत्पूजादिकृत्यं च, निःशेषं तेन निर्मितम् / सपौरान्तःपुरो राजा, श्रीगर्भो निर्गतः पुरात् कृता च तेन सर्वेषां, प्रतिपत्तिर्निजोचिता / पुनः संमिलिता पर्षत्, प्रवृत्तः पृथुरुत्सवः दृष्ट्वाऽद्भुतं सुललिता, क्षणात् तादृक् चमत्कृता / संजातः पौण्डरीकोऽपि, प्रीती विस्मितलोचनः अथातिप्रार्थिते सूरौ, दीक्षां दातुं समुद्यते / राजपुत्री समुद्दिश्य, प्राह भूयोऽनुसुन्दरः न जातः किं तवाद्यापि, बोधः सुललितेऽनघे / यद् दोलायितचित्ता त्वं, लक्ष्यसे चकितेक्षणा त्वद्बोधार्थमयं भद्रे, मया निर्वेदकारकः / स्वीयः प्रकीर्तितः सर्वः प्रपञ्चो भवगोचरः तदमेंन श्रुतेनापि, किं ते चित्ते न जायते / संसारचारके पूर्णे, निर्वेदो दुःखराशिभिः पुरे संव्यवहाराख्ये, मयोक्तं स्वविडम्बनम् / यन्न तत् किं त्वयाऽलक्षि, यद् दधासि भवे रतिम् // 762 // // 763 // // 764 // // 765 // // 766 // // 767 // 249

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