Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 20
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
View full book text
________________ / / 828 // // 829 // // 830 // // 831 // // 832 // // 833 // भावाः किं चानुवर्तन्ते, प्राग्भवाभ्यासतोऽङ्गिनाम् / पुरुषद्वेषिणी जाता, यत् त्वं मदनमञ्जरी तथेहापि तथाभावाद, ब्रह्मचर्यैकनिष्ठिता / उच्चैराकारिताऽसि त्वं, ब्राह्मणीति सखीजनैः तत्किं मिलति ते वृत्तं, प्रोचे सुललिता ततः / आर्य ! किं न मिलत्यत्र, भवद्वचनविस्तरे केवलं मन्दभाग्याऽहं, तिष्ठामि तमसा वृता / वितन्यमानेऽप्यालोके, त्वद्वचोरविरश्मिभिः इत्युक्त्वा कर्मपङ्कस्य, क्षालनायैव बद्धधीः / प्रवृत्ता वर्षितुं बाला, विस्तारि नयनोदकम् ततोऽनुसुन्दरः प्रोचे, मुञ्च खेदं नृपाङ्गजे ! / . क्षीणप्रायान्तरायाऽसि, कुरु भक्तिं सदागमे तत्त्वज्ञानमदो भक्तिमूलमेव हि देहिनाम् / . धन्याऽसि त्वं समायाता, या सदागमसन्निधौ ततः सुललिताऽमीभिर्वचोभिः पांविताशया / सदागमोऽयमित्युच्चैः, पतिताऽऽचार्यपादयोः जगाद च जगन्नाथ !, त्वमेव शरणं मम / अज्ञानपङ्कमग्नायास्त्वमेवोद्धारकारकः . सदागमस्य माहात्म्यात्, ततः संवेगगौरवात् / चेतःप्रहतया चास्या, बहु कर्म क्षयं गतम् जाता जातिस्मृतिर्दृष्टो, वृत्तान्तः प्राग्भवाश्रयः / पपातोत्थाय हृष्टाऽथ, साऽनुसुन्दरपादयोः जगाद च प्रसादात् ते, भगवत्संनिधेस्तथा / जातिस्मृतिर्ममोत्पन्ना, निर्विण्णाऽस्मि भवोदधेः 255 // 834 // // 835 // // 836 // // 837 // // 838 // // 839 //

Page Navigation
1 ... 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298