Book Title: Shashti Shatak Prakaran
Author(s): Nemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
Publisher: Maharaja Sayajirav Vishvavidyalay
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'बालावबोध' एटले. शुं ? ___ आ प्रस्तावनाना प्रारंभमां कयुं छे के बालावबोध ए मूळ संस्कृत के प्राकृत ग्रन्थना अनुवाद के टीकारूपे होय छे. 'बाल' एटले वयमां नहि, पण समज के ज्ञानमां बाल. एना — अवबोध' माटे थयेली रचनाओ ते 'बालावबोध'. गुजरातीनुं जूनामां जूनुं गद्यसाहित्य जैन शास्त्रग्रन्थोना बालावबोधरूपे छे. बालावबोध आम जो के जैन साहित्यनो शब्द छे, पण एनो अर्थ सहेज विस्तारीने ‘भागवत,' 'भगवद्गीता,'' गीतगोविन्द,'' चाणक्य नीतिशास्त्र, ' ' योगवासिष्ठ,' 'सिंहासनबत्रीसी,' 'पंचाख्यान,' 'गणितसार' आदि जे बीजी अनुवादरूप रचनाओ मळे छे ते माटे पण साहित्यना इतिहासमां ए शब्द प्रयोजी शकाय, केम के आ बधा गद्यानुवादोनो उद्देश एक ज छे. बालाबबोधमां केटलीक वार मूळ ग्रन्थोनुं भाषान्तर होय छे, तो केटलीक वार दृष्टान्तकथाओ के अवान्तर चर्चाओ द्वारा मूळनो अनेकगणो विस्तार करेलो होय छे. पण 'बालावबोध 'नो जे एक उत्तरकालीन प्रकार 'स्तबक ' अथवा 'टवा 'रूपे ओळखाय छे एमां मात्र शब्दशः भाषान्तर ज होय छे. एमां 'स्तबक 'नी पोथीओनी लेखनपद्धति कारणभूत छे. बालावबोधना वाचको करतां पण जेमनु शास्त्रज्ञान मर्यादित होय एवा वाचकोने ध्यानमा राखीने 'स्तबक 'नी रचना थयेली छे. एमां पोथीना प्रत्येक पृष्ठ उपर त्रण के चार पंक्ति मोटा अक्षरोमां मूळ शास्त्रग्रन्थनी लखवामां आवती अने प्रत्येक पंक्तिनी नीचे झीणा अक्षरोमां एनो अर्थ लखवामां आवतो, जेथी वाचकने प्रत्येक शब्दनो भाव समजवामां सरळता थाय. आ प्रकारनी लेखनपद्धतिने कारणे प्रत्येक पृष्ठ उपर नाना अने मोटा अक्षरोमां लखायेली पंक्तिओनां जाणे के ' स्तबक '
-झूमखां रचायां होय एम जणातुं. ए उपरथी आ प्रकारना अनुवादो माटे 'स्तबक ' शब्द वपरायो, जेमाथी गुजराती — टबो' व्युत्पन्न थयो.