Book Title: Shashti Shatak Prakaran
Author(s): Nemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
Publisher: Maharaja Sayajirav Vishvavidyalay

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Page 13
________________ प्रस्तावना जूनुं गुजराती गद्य जूना गुजराती साहित्यमां गद्य लखाणो अणछतां के विरल हतां एवो एक सामान्य ख्याल प्रवर्ते छे, पण जूना साहित्यनी शोध थती जाय छे तेम तेम ए ख्याल प्रमाणपुरःसर नथी ए निश्चित थाय छे. ठेठ विक्रमना चौदमा शतकथी मांडी जूनी गुजरातीमां ( अथवा डॉ. टेसीटरीए प्रचलित करेलो शब्द वापरीए तो जूनी पश्चिम राजस्थानीमां ) * गद्यसाहित्य मळे छे अने उत्तरोत्तर एनुं वैपुल्य वधतुं जाय छे. अर्वाचीन काळमां गद्य साहित्यना घणाखरा प्रकारोनुं वाहन बन्युं छे * सोळमा सैकामां तथा त्यार पहेलांना समयमां 'जूनी गुजराती' अने 'जूनी पश्चिम राजस्थानी' ए बन्ने शब्दप्रयोगो वडे एक ज वस्तुनो बोध थाय छे. संभवित बोलीभेदोवाळी एक ज सामान्य भाषा गुजरात अने राजस्थानमां-खास करीने पश्चिम राजस्थानमां-बोलाती हती. आ भाषाकीय एकताना कारणमां पूर्वकाळनो राजकीय तेम ज सांस्कृतिक इतिहास रहेलो छे, जेनी वीगतमां ऊतरवू अहीं प्रस्तुत नथी. पण गुजरातनुं एक वार- पाटनगर श्रीमाल अत्यारे राजस्थानमा गणाय छे अने गुजरातनी अनेक ब्राह्मण, वणिक अने कारीगर ज्ञातिओनां नामो सूचित करे छे के एक काळे ए बधो प्रजासमूह अत्यारे जेने पश्चिम राजस्थान कहेवामां आवे छे ए प्रदेशमांथी अत्यारना गुजरातमां आवीने वस्यो हतो, एवी केटलीक हकीकत लक्षमा राखवा जेवी छे. आ ऐतिहासिक पार्श्वभूमिका जो ख्यालमां न होय तो 'जूनी गुजराती' अने 'जूनी पश्चिम राजस्थानी' जेवा प्रयोगो वास्तविक अर्थबोधमां थोडो संभ्रम ऊभो करे खरा. एथी आपणी भाषानी ए प्राचीन भूमिका माटे श्री. उमाशंकर जोषीए ‘मारु-गुर्जर' एवो शब्द सूचव्यो हतो. आजे पण राजस्थाननी भाषा एना बंधारणनी दृष्टिए हिन्दी करतां गुजरातीने वधारे मळती छे ए वस्तु आ ऐतिहासिक परिस्थितिना प्रत्यक्ष समर्थनरूप छे. आ ' प्राचीन गुर्जर ग्रन्थमाला'मां आपणी भाषाना आ 'मारु-गुर्जर' युगनी पण केटलीक कृतिओ प्रसिद्ध थशे-अने आ प्रथम पुष्प तो ए युगर्नु ज छे--ए कारणे आटलुं स्पष्टीकरण के विषयान्तर जरूरी गण्युं छे.

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