Book Title: Shakahar Jain Darshan ke Pariprekshya me Author(s): Hukamchand Bharilla Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 7
________________ शाकाहार। | जैनदर्शन के परिप्रेक्ष्य में दिगम्बर जैन समाज की सभी सामाजिक संस्थाओं ने मिलकर इस वर्ष ( १९६१ ई.) को शाकाहार वर्ष के रूप में घोषित किया है। समाज के इस शुभ संकल्प में अखिल भारतीय जैन युवा फैडरेशन ने भी सक्रिय सहयोग करने का निश्चय किया है। ___ जैन समाज मूलत: शाकाहारी समाज ही है, पर काल के प्रभाव से इसमें भी कुछ शिथिलता आना आरम्भ हो गई है। यदि जैन समाज समय रहते नहीं चेता तो यह बीमारी और भी अधिक फैल सकती है। अत: समय रहते इस घातक बीमारी का इलाज किया जाना चाहिए। यद्यपि यह सत्य है कि इस घातक बीमारी की छूत जैनसमाज में लग रही है, पर अभी स्थिति ऐसी नहीं है कि हम अपना समग्र ध्यान इस ओर ही केन्द्रित कर दें, पर जैन श्रावक श्रावकाचार से तेजी से विरक्त होते जा रहे हैं; अत: यह अत्यन्त आवश्यक हो गया है कि उन्हें श्रावकाचार से परिचित कराया जाय, श्रावकाचार को जीवन में अपनाने के लिए प्रेरित किया जाय। इस बात को ध्यान में रखकर युवा फैडरेशन ने इस वर्षको शाकाहार श्रावकाचार वर्ष के रूप में मनाने का निर्णय लिया है। आवश्यक तैयारी के लिए पर्याप्त समय मिल जावे - इस बात को ध्यान में महावीर जयन्ती १६६१ ई. से महावीर जयन्ती १९६२ ई. तक का समय शाकाहार श्रावकाचार वर्ष के लिए सुनिश्चित किया गया है। जैन समाज ने समाज के कल्याण के लिए समय-समय पर जो भी कार्यक्रम सुनिश्चित किये, अखिल भारतीय जैन युवा फैडरेशन एवंPage Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28